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अन्तराय कर्म
1062. अन्तराय कर्म किसे कहते हैं? उ. अन्तराय का अर्थ है बीच में उपस्थित होना, विघ्न करना, व्याघात करना।
जो कर्म क्रिया, लब्धि, भोग और बलस्फोटन करने में अवरोध उपस्थित
करे उसे अन्तराय कर्म कहते हैं। 1063. अन्तराय कर्म की उत्तर प्रकृतियां कितनी हैं?
उ. पांच-(1) दान-अन्तराय कर्म, (2) लाभ-अन्तराय कर्म, (3) भोग
__ अन्तराय कर्म, (4) उपभोग-अन्तराय कर्म, (5) वीर्य-अन्तराय कर्म। 1064. दान किसे कहते हैं?
उ. अपने, पराये अथवा दोनों के उपकार के लिए देना दान है। 1065. दान के कितने प्रकार हैं? उ. दान के दो प्रकार हैं(1) व्यावहारिक (2) पारमार्थिक
अथवा (1) लौकिक (2) लोकोत्तर 1066. लौकिक व लोकोत्तर दान किसे कहते हैं? उ. सांसारिक प्रवृत्ति चलाने व असंयमी के पोषण के लिए दान देने को लौकिक
दान कहते हैं। जो दान संयमी के विकास में सहायक होता है, उसे लोकोत्तर
दान कहते हैं। 1067. स्थानांग सूत्र में दान के कितने प्रकार बताए गए हैं?
उ. स्थानांग सूत्र में दान के दस प्रकार बताए गए हैं
(1) अनुकम्पा दान - करुणा से देना। (2) संग्रह दान - सहायता के लिए देना। (3) भय दान - भय से देना। (4) कारुण्य दान - मृतक के पीछे देना।
1. श्रीपाल मैनासुन्दरी के कथानक में सुरसुन्दरी का प्रसंग, कथा सं. 23
: कर्म-दर्शन 225