Book Title: Karm Darshan
Author(s): Kanchan Kumari
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 253
________________ करती है। इस भ्रम के कारण राजा ने उसे जंगल में छुड़वा दिया और चाण्डालों से कहकर दोनों हाथ कटवां दिये। ___ शोक के तीव्र आघात से रानी कलावती मूर्च्छित हो गई। जब उसे होश आया तो वह रुदन करने लगी। लेकिन उसके रुदन को सुनने वाला कौन था? स्वयं ही चुप हो गई। इसी दशा में वन में एक नदी के किनारे उसने पुत्र प्रसव किया। वह पुत्रवती तो बन गई लेकिन पुत्र को उठाने और उसका पालन-पोषण करने के लिए उसके पास हाथ न थे। शोकार्त होकर उसने अपने शीलधर्म की दुहाई दी तो नदी की अधिष्ठात्री देवी ने उसके हाथ वापस दे दिये। उसने अपने पुत्र को उठा लिया और उसे स्तन-पान कराने लगी। तभी कुछ तापस उधर आ निकले। वे रानी को अपने आश्रम में ले गये। आश्रम में रहकर रानी अपने पुत्र का पालन-पोषण करने लगी। इधर चाण्डालिनियों ने शंख राजा को रानी कलावती के कंगन सहित कटे हुए हाथ दिये। इन कंगनों पर जयसेन नाम पढ़कर राजा को अपनी भूल मालूम हुई। उसे पश्चात्ताप हुआ। उसने खोजी घुड़सवार दौड़ाये। रानी कलावती का पता चल गया। राजा स्वयं जाकर उसे तापस आश्रम से ले आया। राजा उसके शीलधर्म से बहुत प्रभावित हुआ। एक बार शंखपुर में एक ज्ञानी मुनि आये। दोनों मुनि के दर्शनार्थ गये। रानी ने जिज्ञासा प्रकट की-गुरुदेव! निरपराधिनी होते हुए भी मेरे हाथ क्यों काटे गये? इसका क्या कारण है? गुरुदेव ने बताया-पिछले जन्म में तुम महेन्द्रपुर के राजा नर विक्रम की पुत्री सुलोचना थी। राजा नर-विक्रम को भेंट में एक तोता मिला। तुम उसे बड़े प्रेम से पालने लगी। एक बार तुम उस तोते को साथ लेकर मुनि दर्शन के लिए गयी। मुनि के दर्शन करते ही तोते को जातिस्मरण ज्ञान हो गया। वह जान गया कि-'पिछले जन्म में मुनि था, लेकिन परिग्रह की उपाधि के कारण मैंने संयम की विराधना की इसलिए तोता बना हूँ। ऐसा जानते ही उसने नियम बना लिया कि-"मैं भगवान, मुनि अथवा त्यागीजनों के दर्शन-वंदन के बाद ही आहार ग्रहण करूँगा। दर्शनों के लिए अब तोता पिंजरे से निकलकर उड़ जाता। एक बार वह कई दिनों तक वापस नहीं आया। सुलोचना को यह बहुत बुरा लगा। जब तोता वापस आया तो उसने उसके पंख काट दिये। मुनिराज ने बताया-उस तोते का जीव ही राजा शंख बना है और पंख कटवाने के कारण ही तुम्हारे भी हाथ कट गये। 252 कर्म-दर्शन 252 कर्म-दर्शन AMARHAR MAHARAHAARAAAAAAAAAAAAAAA E E

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