Book Title: Karm Darshan
Author(s): Kanchan Kumari
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 277
________________ नरक से निकलकर असंख्य भवों में परिभ्रमण किया। फिर मनुष्य योनि में धनपाल नाम का व्यवसायी बना। एक बार वह चार-छः महीनों के लिए भाणजे को सारा कार्य सौंपकर बाहर चला गया। भाणजे ने पीछे से मामा के सारे धन पर कब्जा कर लिया। धनपाल जब पुनः लौटा तो उसे गहरा सदमा लगा । उस आघात से वह कुछ समय बाद ही मर गया। धन के प्रति आसक्ति होने के कारण वह सर्पयोनि में जन्मा । सर्वप्रथम भाणजे को काटा, फिर दो-चार दिनों में सभी को मार दिया। वीरान घर में राजा के आदमी धन लेने आये तो उन्हें भी काट खाया । दिन-रात धन की रक्षा में ही संलग्न रहता था। एक बार तूफानी बारिश हुई। बारिश के पानी में धन के साथ-साथ सर्प भी बह गया और मर गया। मरकर पांचवीं नरक का नैरयिक बना। सर्वज्ञ मुनि ने अन्त में कहा- राजन् ! इस प्रकार वह व्यक्ति बार-बार नरक में जाता रहा है और अब भी वह नरक का ही मेहमान है नरक का आयुष्य बंधा हुआ है। इस अवसर्पिणी में यहीं व्यक्ति सबसे अधिक समय तक नरकगामी होगा। 0 (31) साहंजनी नगरी का महाराज महचंद था। उसके प्रधान का नाम था —— - 'सुषेण' । वहाँ एक गणिका थी, जिसका नाम था — सुदर्शना । नगर में एक साहूकार था, जिसका नाम था – सुभद्र और सेठानी का नाम था — भद्रा । उसके एक पुत्र हुआ, जिसका नाम रखा गया— शकटकुमार । एक बार भगवान महावीर जनपद में विहार करते हुए उसी साहंजनी नगरी में पधारे। गौतम भिक्षार्थ नगर में गये तो वहाँ एक विचित्र दृश्य देखा – अनेक हाथी, घोड़ों और मनुष्यों के समूह में एक स्त्री के पीछे एक पुरुष को बांध रखा था। दोनों नाक, कान कटे हुए थे । उन्हें वधभूमि में ले जाया जा रहा था। वे दोनों स्त्री- पुरुष जोर-जोर से क्रन्दन कर रहे थे- -'हम अपने पापों के कारण मारे जा रहे हैं। कोई हमें बचाओ। हमारे पाप ही हमें खा रहे हैं।' यह दृश्य देख लोग कांप रहे थे। गौतम स्वामी भगवान् के पास गये। गौतम ने सारी बात कहकर भगवान से पूछा - 'प्रभु ऐसा उन्होंने पूर्वजन्म में कौनसा पाप किया था, जिससे यों मारे जा रहे हैं ?' भगवान ने कहा – 'गौतम ! छगलपुर नगर में एक सिंहगिरि नाम का राजा था। 276 कर्म-दर्शन

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