Book Title: Karm Darshan
Author(s): Kanchan Kumari
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 278
________________ वहाँ एक 'छणिक' नाम का कसाई था। वह कसाई धनवान तो था, पर था क्रूरकर्मी, पापात्मा और दुराचारी। अपने बाड़े में बकरे-बकरियों, गाय, भैंस, पाड़े, हरिण, मोर, मोरनियां आदि अनेक जानवरों को लाखों की संख्या में मारने के लिए इकट्ठा किये रखता। उन्हें मारकर मांस बेचता। औरों से मरवाकर मांस खरीदता। वह मांस का बहुत बड़ा क्रेता-विक्रेता था। पशुओं का वध करने में उन्हें तनिक भी संकोच नहीं होता। यों पापों में रह रहकर सात सौ वर्ष की आयु में वहाँ से मरकर वह चौथी नरक में गया। वहाँ से निकलकर वह इस नगर में सुभ्रद सेठ का पुत्र शकटकुमार हुआ है। कोढ़ में खुजलाहट हुआ ही करती है। शकटकुमार के माता-पिता बचपन में मर गए। अब इसे रोकने-टोकने वाला कौन? धीरे-धीरे वह सभी दुर्व्यसनों में लिप्त हो गया। नगर का प्रमुख जुआरी, व्यभिचारी तथा चोर कहलाने लगा तथा धीरे-धीरे सुदर्शना वेश्या के प्रेम में वह फंस गया। सुदर्शना और शकट के प्रेम का महामात्य सुषेण को पता लग गया। अमात्य ने शकट को धक्के देकर निकाल दिया और सुदर्शना को अपने यहाँ महलों में बुलवा लिया। शकट फिर भी नहीं संभला। मौका लगाकर वेश्या के पास वह पहुंच ही गया। प्रधान ने उसे रंगे हाथों पकड़ लिया। फिर क्या था! प्रधान ने राजा से कहा-'इसे कठोर से कठोर दण्ड दिया जाये।' बस, राजा और प्रधान के आदेश से उनके नाक-कान काटकर तर्जना देते हुए वधभूमि में ले जाकर मारने का आदेश हो गया। गौतम! तुम उन्हीं दोनों को देख आये हो।' बात को आगे बढ़ाते हुए भगवान ने कहा-वह शकट कुमार 57 वर्ष की आय में आज तीसरे पहर में लोह की गर्म भट्टी में होमे जाने के कारण मृत्यु को प्राप्त करेगा। आर्त-रौद्रध्यान में मरकर प्रथम नरक में पैदा होगा। अनन्तकाल तक संसार में परिभ्रमण करता रहेगा। अन्त में कर्मरहित होगा। —विपाक सूत्र 4 (32) मांसाहार हस्तिनापुर के महाराज 'सुनंद' के बहुत विशाल गौशाला थी, जिसमें बहुतसी गायें सुख से रह रही थीं। उसी नगर में भीम नाम का गुप्तचर था। उसकी पत्नी का नाम था 'उत्पला'। उत्पला गर्भवती हुई। उसे गौ की गर्दन का मांस खाने का मानसिक संकल्प (दोहद) हुआ। परन्तु गौमांस मिले कैसे? वह दोहद-पूर्ति हेतु चिन्तातुर रहने लगी। भीम को अपनी पत्नी की मनोव्यथा का जब पता लगा, तब रात्रि के समय गौशाला में छिपकर गौ को मारकर उसका मांस ले आया। उत्पला ने कर्म-दर्शन 277

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