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नाम कर्म
काशी राज्य की राजसभा जुड़ी हुई थी। राजा ने सभासदों से जानना चाहा कि मुझे राजदूतों की नियुक्ति करना है, उनमें कौन-कौन से गण होने चाहिए? लोगों ने अनेक गुण बताये। उसी सभा में एक वृद्धमंत्री बैठा था। उसने कहा-राजन्! सब कुछ होते हुए भी यशस्वी होना चाहिए।
राजा-बात तो ठीक है पर इसका पता कैसे चले?
मंत्री—राजन् ! जो सर्वगुणसम्पन्न हो। उन दो-चार व्यक्तियों को कहीं अलग भेजकर, उनकी कार्य की सफलता-असफलता की परीक्षा कर राजदूत के पद की नियुक्ति होनी चाहिए।
राजा ने विमलवाहन और सोमभद्र इन दो युवकों को विभिन्न कसौटियों में कसते हुए—ये यशस्वी हैं या नहीं? इसकी परीक्षा के लिए दोनों को क्रमश: कौशल
और कलिंग देश भेजा। उपहार स्वरूप दोनों देश के राजाओं को कई वस्तुएं भेजी, उनमें एक चांदी की डिब्बी में चूना भरा हुआ भेजा।
विमलवाहन कौशल देश की राजधानी पहुंचा और वहाँ के राजा से मिला। प्रारम्भिक शिष्टाचार के बाद विमलवाहन ने अपने राजा के उपहार भेंट किये। राजा ने एक-एक वस्तु को स्वयं ने भी देखा और जनता को भी दिखाया। देखते-देखते जैसे ही चूने वाली डिब्बी हाथ में आयी, सब ने पूछा-यह किसलिए? इतने में किसी ने कह दिया—'चूना भेजकर काशी नरेश ने संकेत दिया है कि यदि हमारे साथ लड़ाई करोगे तो सबके चूना लगा देंगे। बस! इतना कहने के साथ ही सब भड़क उठे। विमलवाहन ने इसे स्पष्ट करने की बहुत कोशिश की, पर असफल रहा। दोनों राजाओं में मित्रता समाप्त हो गई। विमलवाहन के मुख पर ही वह चूना लगाया
और युद्ध की घोषणा कर वहाँ से उसे निकाला गया। विमलवाहन ने काशी नरेश को सारी स्थिति बतायी। सभी ने जान लिया कि यह यशस्वी नहीं है।
दूसरा सोमभद्र कलिंग देश की राजधानी पहुंचा। राजा से मिला। औपचारिक बातचीत के पश्चात् उपहार स्वरूप वस्तुएं भेंट की। राजा अपने मित्र राजा के उपहार देख कर बहुत प्रसन्न हो रहे थे और वे उपहार राजसभा के सदस्यों को भी दिखा रहे थे। देखते-देखते चूने वाली डिब्बी हाथ में आई, तो सब आश्चर्यचकित हो इसके भेजने का कारण ढूंढ़ने लगे। इतने में पास में बैठे एक मंत्री ने कहा—“यह मैत्री का
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