Book Title: Karm Darshan
Author(s): Kanchan Kumari
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 286
________________ लोग पंडित जी की बातों में आ गये। मुनि के शरीर को देखा तो छाती पर केश नहीं थे, कान भी कुछ छोटे थे, बस क्या था पण्डित जी के बात की हृदय में पक्की धारणा कर ली। उन्हें क्या पता कि मुनि के शरीर में अन्य कई लक्षण श्रेष्ठतम हैं। मानो लोगों ने तो मुनिजी के पास जाना ही बंद जैसा कर दिया। उस समय विशालप्रज्ञ के ज्ञानी की अवमानना, तथा निंदा करने से अशुभ नाम तथा नीच गोत्र कर्म का भारी बंध हो गया। विशालप्रज्ञ पंडित ही यह विमलवाहन है और विमलप्रज्ञ पण्डित ही यह सोमभद्र है। दोनों ही पिछले जन्म में बांधे हुये शुभ-अशुभ कर्मों को यहाँ भोग रहे हैं। (37) गोत्र कर्म ऐश्वर्य विशिष्टता मथुरा के नगरसेठ विश्ववाहन के यहां एक गृह नौकर रहा करता था। बहुत परिश्रमी था। उसका नाम था-अंगभान। एक दिन तपस्वी विद्याचरण मुनि सेठ के घर गोचरी पधारे। परिवार के सभी सदस्य अकल्पनीय थे, सचित्त जल, वनस्पति आदि से संस्पृष्ट थे। तब नौकर अंगभान के हाथ से मुनि जी ने भिक्षा ग्रहण की। वह इस दान देने का अवसर मिल जाने पर बहुत प्रसन्न था। उसका रोम-रोम खिल उठा। मुनि जी ने वहीं मकान में एक तरफ बैठकर पारणा किया। अंगभान बार-बार मुनिजी को भावना भाता रहा। ___ मुनिजी ने कहा-कुछ नहीं चाहिए। तुम यहाँ क्या करते हो? अंगभान ने अपनी पूरी दिनचर्या बतायी। मुनिजी ने प्रतिदिन दर्शन करने की प्रेरणा दी। अंगभान ने वह नियम स्वीकार कर लिया। यदि नगर में मुनि हो, तो प्रतिदिन उनके दर्शन किये बिना अन्न-जल ग्रहण नहीं करूंगा। नियम के अनुसार वह प्रतिदिन दर्शन करने जाने लगा। जितने भी मुनिवृंद होते, उन सबके अलग-अलग दर्शन करता था। इससे सेठ के कार्य में कुछ विलम्ब होना स्वाभाविक था। नौकर का यह क्रम सेठ को पसन्द नहीं आया। सेठ सोचने लगा–नौकरों का क्या धर्म है? उन्हें तो अपने काम से मतलब है। सेठ ने अंगभान को चेतावनी देते हुए कहा-अगर हमारे कार्य में विलम्ब होगा तो हमें बर्दास्त नहीं है। संत दर्शन का नियम तुम जानो। काम में विलम्ब होने पर तुम्हारे स्थान पर दूसरा आ सकता है। मेरी दृष्टि में तुम्हें इस धर्मोपासना के चक्कर में नहीं फंसना चाहिए। आज नहीं तो कल नियम को छोड़ना पड़ेगा। कर्म-दर्शन 285

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