Book Title: Karm Darshan
Author(s): Kanchan Kumari
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 287
________________ अंगभान ने कहा— सेठजी ! मेरे जिम्मे जो काम है, उसे समय पर कर दूंगा, पर संतदर्शन हमेशा करूंगा। उसे मैं नहीं छोड़ सकता । सेठ – मुझे तो काम से मतलब है। बाकी तू जाने तेरा काम जाने। मैं भी देखता हूँ। इन दोनों को कब तक निभा पाता है। बेचारा अंगभान कुछ पसोपेश में पड़ गया। फिर भी संतदर्शन नियमित करता रहा। रात्रि में जल्दी उठता और संतदर्शन के लिए चल पड़ता था । सब संतों का अलग-अलग और विधिवत् दर्शन करता था । कभी अधिक काम होता तो वह रात्रि में 4-5 बजे दर्शनार्थ चला जाता था। एक बार घर में कोई उत्सव था । काम अधिक था। रात्रि में बारह बजे सोया । तीन बजे पुनः काम में लगना था । अंगभान ढाई बजे उठकर तेजगति से संतदर्शन के लिए चल पड़ा। राज्य की पुलिस मुख्य-मुख्य मार्गों एवं स्थानों पर गस्त लगा रही थी। उन्होंने अंगभान को चोर समझा और दर्शन करके वापस आते समय उसे गिरफ्तार कर लिया। उसे कारावास में सख्त पहरे के बीच बंद कर दिया गया। प्रात: राजा के समक्ष उपस्थित हुआ । राजा ने इसे देखकर सोचा — यह चोर तो नहीं लगता। इसके चेहरे पर सात्त्विकता छलक रही है। इसके हाथ पुरुषार्थ के प्रतीक लगते हैं। पुलिस ने इसे चोरी के अभियोग में गिरफ्तार कर लिया है। बात कुछ समझ में नहीं आ रही है। राजा ने पूछा— चोरी तुमने की ? कहाँ की ? कौनसी वस्तु चुराई ? सच - सच बताओ। अंगभान सोचने लगा- -अब क्या बोलूं । चोरी नहीं की, ऐसा कहने से ये यमदूत (पुलिस) खड़े हैं, पीट-पीटकर चमड़ी उधेड़ देंगे। चोरी की, ऐसा कहने से आगे आने वाले प्रश्नों का जवाब एवं प्रमाण देना पड़ेगा। न देने पर फिर मार खानी पड़ेगी। राजा ने पूछा – सच - सच बता भयभीत क्यों होता है ? अंगभान ने सारी बात यथावत् बता दी। राजा ने सेठ विश्ववाहन को बुलाकर पूछा -- सेठ ने कहा राजन् ! यह मेरा नौकर है। बिना संतदर्शन किये मेरा काम भी नहीं करता। राजा ने इसे छोड़ दिया। हवेली आते ही सेठ ने इसे नौकरी से हटा दिया। अब अंगभान खुला काम करने लगा। उससे होने वाली आय से गुजारा चलाने लगा। संत दर्शन की अपनी प्रतिज्ञा जीवनपर्यन्त निभाता रहा। कभी प्रमाद नहीं किया। = अंगभान जब मरा, तो उसके शरीर का संस्कार करने वाला कोई नहीं था । राजकर्मचारी आये, उसके शरीर को श्मशान में ले जाने लगे, तब यक्ष देवों ने उसके शरीर पर पुष्पवृष्टि की। अंगभान की जय-जयकार करते हुए उसकी स्तुति करने लगे। यह सब सुनकर, देखकर लोगों को बहुत आश्चर्य हुआ। राजा, नगरसेठ, सेठ विश्ववाहन, सेनापति आदि विशिष्ट लोग तथा हजारों संभ्रांत नागरिक अब इसकी शवयात्रा में आ पहुंचे। 286 कर्म-दर्शन

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