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(40) भोगान्तराय (मम्मण सेठ)
राजगृह नगर में एक सेठ रहता था। जिसका नाम था-मम्मण सेठ। उसने अत्यन्त परिश्रम से प्रचुर धन अर्जित किया। वह न पूरा भोजन करता और न ही पानी पीता था। उसने अपने प्रासाद की छत पर स्वर्गमय एक बैल का निर्माण करवाया। उसमें दिव्य रत्न जटित किये। उसके सींग वज्रमय थे। उसमें करोड़ों का व्यय किया। उसने दूसरे बैल का निर्माण प्रारम्भ किया। वह भी पूर्णता की ओर ही था। एक बार उस बैल के निमित्त वर्षारात्रि में मम्मण लंगोटी लगाए नदी से काठ के गट्ठर निकाल रहा था। राजा श्रेणिक और रानी चेलना दोनों गवाक्ष में बैठे थे। रानी की दृष्टि उस पर पड़ी। वह दयाभिभूत हो गई। उसने सात्त्विक आक्रोश करते हुए राजा से कहा
'सच्चं सुव्वइ एयं, मेहनहसमा हवंति रायाणो।
भरियाई भरेंति दढं, रित्तं जत्तेण वज्जेइ।' यह सही सुना जाता है कि राजा लोग वर्षा की नदियों के समान होते हैं। वे भरे हुए को और अधिक भरते हैं। जो रिक्त हैं उन्हें प्रयत्नपूर्वक रिक्त ही रखते हैं। राजा ने पूछा-कैसे? रानी बोली—'देखिए, वह गरीब कितना कष्ट पा रहा है।' रानी ने नदी की ओर अंगुलि कर राजा को दिखाया। राजा ने मम्मण सेठ को अपने पास बुला भेजा। राजा ने पूछा-इतना कष्ट क्यों पा रहे हो? उसने कहा-मेरे पास एक बैल है, मैं उसकी जोड़ी का दूसरा बैल बनाना चाहता हूँ। वह प्राप्त नहीं हो रहा है। राजा बोला—एक नहीं, सौ बैल ले लो। वह बोला—इन बैलों से मेरा क्या प्रयोजन? पहले जैसा ही दूसरा चाहिए। राजा बोला-तेरा बैल कैसा है? मम्मण राजा को अपने घर ले जाकर स्वर्ण निर्मित बैल को दिखाया। राजा बोला—यदि मैं अपना सम्पूर्ण खजाना भी दे दूं, फिर भी इस बैल की सम्पूर्ति नहीं हो सकती। आश्चर्य है इतना वैभव होने पर भी तुम्हारी तृष्णा नहीं भरी। मम्मण बोला-जब तक मैं इसकी पूर्ति नहीं कर लूंगा, तब तक मुझे चैन नहीं होगा। ___ राजा बोला-मम्मण! तुम्हारे अनेक प्रकार के व्यापार होते हुए भी नदी में खड़े रहकर कष्ट क्यों पाते हो? मम्मण बोला-वर्षा काल में अन्य व्यापार नहीं चलते। इस समय काष्ठ बहुमूल्य होने के कारण नदी में से उन गट्ठरों को निकाल रहा हूँ। राजा बोला-मम्मण! तुम्हारा मनोरथ तुम ही पूरा कर सकते हो, दूसरा कोई अन्य समर्थ नहीं हो सकता। मैं भी समर्थ नहीं हूँ। राजा चला गया। मम्मण श्रम करता रहा। समय पर मनोरथ पूरा हुआ। उसने दूसरे बैल का निर्माण कर लिया।
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43 कर्म-दर्शन 291