Book Title: Karm Darshan
Author(s): Kanchan Kumari
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 258
________________ सिंहरथ की चिता ठंडी भी नहीं हो पाई थी कि उसके छोटे भाई वीरदमन ने सिंहासन पर अधिकार कर लिया। उसने श्रीपाल को भी मौत के घाट उतारने का षड्यंत्र रचाा। लेकिन मंत्री मतिसागर की सावधानी से रानी कमलप्रभा अपने पुत्र श्रीपाल को लेकर निकल गई। वन में सात सौ कोढ़ियों का दल मिला। वीरदमन के सैनिकों से बचने के लिए कमलप्रभा अपने पुत्र को लेकर कोढ़ी दल में मिल गई और उनके साथ रहने लगी। कोढ़ियों के सम्पर्क से श्रीपाल को भी कोढ़ हो गया। यद्यपि श्रीपाल कोढ़ी हो गया था, फिर भी सभी कोढ़ी उसे उम्बर राणा कहते और राजा के समान ही आदर देते। श्रीपाल के कोढ़ी होने से रानी कमलावती चिंतित हो गई। जब कोढ़ी दल एक नगर के समीप पहुंचा तो कमलप्रभा नगर में कोढ़ की दवाई लेने चली गयी। जाते-जाते उसने कोढ़ियों के मुखिया से इतना अवश्य पूछ लिया कि आगे वे लोग किस नगर को जाएंगे। कोढ़ियों के मुखिया ने उज्जयिनी नगरी का नाम बता दिया। कमलप्रभा के जाने के बाद कोढ़ी-दल आगे बढ़ा और उज्जयिनी नगरी की सीमा पर पहुंचा। मालव देश की राजधानी उज्जयिनी में उस समय प्रजापाल नाम का राजा राज्य करता था। उसकी दो पुत्रियां थीं—बड़ी सुरसुन्दरी और छोटी मैनासुन्दरी। सुरसुंदरी की माता का नाम सौभाग्यसुन्दरी और मैनासुन्दरी की माता का नाम रूपसुंदरी था। राजा प्रजापाल बहुत ही अभिमानी था। वह अपने आप को सबका भाग्यविधाता मानता था। समझता था कि मैं किसी को भी सुखी अथवा दुःखी कर सकता हूँ। सुरसुन्दरी तो राजा के अहं को तुष्ट करती थी, लेकिन नासुन्दरी जिनधर्म और कर्म सिद्धान्त में दृढ़ निष्ठा वाली थी, वह सुख-दुख का कारण अपने ही कर्मों को मानती थी। एक दिन राजसभा में दोनों पुत्रियां आयीं। बातों के दौरान सुरसुन्दरी ने अपने पिता के विचारों का ही समर्थन किया। अतः राजा प्रसन्न हो गया और उसने उसका विवाह उनके इच्छित वर शंखपुर के राजकुमार अरिदमन के साथ कर दिया। किन्तु मैनासुन्दरी ने अपने पिता के विचारों का समर्थन नहीं किया; सुख-दुःख का कारण प्राणी के अपने कर्मों को बताया। इस पर राजा प्रजापाल उससे नाराज हुआ। उसने उसका विवाह कोढ़ी उम्बर राणा के साथ कर दिया। मैनासुन्दरी इस दुःखद परिस्थिति में न घबराई। न निराश हुई। उसने नवपद की आराधना की और न केवल पति को वरन् उन सभी सात सौ कोढ़ियों को स्वस्थ कर दिया। सभी के कोढ़ जड़-मूल से नष्ट हो गये और उसका शरीर कुन्दन के समान कर्म-दर्शन 257

Loading...

Page Navigation
1 ... 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298