Book Title: Karm Darshan
Author(s): Kanchan Kumari
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 257
________________ प्रभु के दर्शनार्थ आया था। प्रभु ने सभी को धर्मोपदेश दिया। धर्मोपदेश सुनकर सभी अपने-अपने स्थान को गए। गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से पूछा – प्रभु ! उस जन्मांध व्यक्ति की भांति अन्य किसी स्त्री ने भी ऐसे किसी बालक को जन्म दिया है? भगवान ने कहा— मृगा रानी ने इससे भी अधिक भयावने पुत्र को जन्म दिया है। वह उसे भौंरे में रखती है। वह जो भी खाता है उससे जो रुधिर-मांस बनता है, वह भी शरीर से झरता रहता है और वह उस रुधिर - मांस को पुनः पुनः खाता रहता है। वह जन्म से ही अंधा, गूंगा, बहरा और लूला है। नरक से भी अधिक दुर्गन्ध आती है। वह मनुष्य केवल नाम का है, है तो लोढ़े का आकार । गौतम स्वामी प्रभु की आज्ञा लेकर उसे देखने गये । मृगावती ने सोचा - इस गुप्त रहस्य का इन्हें कैसे पता चला ? गौतम ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए भगवान महावीर का नाम बताया। मृगावती गौतम स्वामी को भौंयरे के पास ले गई। उसे देखकर गौतम स्वामी को बहुत आश्चर्य हुआ । कर्मों की विचित्र गति का चिन्तन करते हुए प्रभु के पास आए और उसका पूर्वभव पूछा। प्रभु ने इसके सारे क्रूर कर्मों का कच्चा चिट्ठा सबके सामने रख दिया। भविष्य प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान ने कहा-' - 'यह छत्तीस वर्ष की उम्र में मरकर सिंह होगा। वहाँ से मरकर प्रथम नरक में जाएगा। वहाँ से निकलकर नेवला होगा। वहाँ से दूसरी नरक में जाएगा। वहाँ से निकलकर पक्षी होगा। वहाँ से तीसरी नरक में जाएगा। इस प्रकार यह सातों नरक में जाएगा और अनन्तकाल तक संसार में परिभ्रमण करेगा। अन्त में महाविदेह क्षेत्र से मुक्त होगा । मृगालोढ़ा के जीवन चरित्र से यह ज्ञात होता है कि उसने पूर्व जन्म में प्राणभूत आदि को बहुत कष्ट दिये जिसके कारण उसे इकाई जीवन के अन्त में एक साथ सोलह रोग उत्पन्न हुए और मृगालोढ़ा के आकार जैसा शरीर प्राप्त हुआ। यह सब असातावेदनीय का परिणाम है। (23) अंगदेश की राजनगरी चम्पापुरी थी। जिस देश का शासक था सिंहरथ राजा । सिंहरथ के मंत्री का नाम मतिसागर था । सिंहरथ की रानी का नाम था कमलप्रभा । रानी कमलप्रभा ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम श्रीपाल रखा गया। अभी श्रीपाल पांच-छह वर्ष का शिशु ही था कि राजा सिंहरथ का स्वर्गवास हो गया । 256 कर्म-दर्शन

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