Book Title: Karm Darshan
Author(s): Kanchan Kumari
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 255
________________ आया। आव देखा न ताव, बिना विचारे ही जल्लाद को बुलाकर मुनि की चमड़ी उतारने का आदेश दे दिया। जल्लाद मुनि को पकड़कर श्मशान में ले गये। मुनि की नख से शिख तक सारी चमड़ी उतार दी। मुनिवर को भयंकर वेदना थी । फिर भी वे समाधिस्थ रहे। अद्भुत तितिक्षा से केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में पहुंचे। मुनि के छिले जाने के बाद यह दुश्चर्चा नगर में हवा की भांति फैल गई। जिसने भी सुना, उसने राजा की भर्त्सना की। सुभटों को जब पता लगा तब वे भी अपनी असावधानी पर बिसूर - बिसूर कर रोने लगे। भेद खुला तो अपने साले की इस भांति निर्मम हत्या से राजा पुरुषसिंह भी शोकाकुल हो उठा। रानी के दुःख का तो कोई ठिकाना ही नहीं था । किन्तु 'अब पछताय होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।' संयोग की बात थी कि ‘धर्मघोष' मुनि उसी दिन वहाँ पधारे। राजा-रानी तथा सहस्रों नागरिक मन ही मन दुःख, ग्लानि, घृणा समेटे मुनि की सेवा में उपस्थित हुए। राजा ने अनुताप करते हुए मुनि से यही प्रश्न किया— 'भगवन्! मेरे से ऐसा जघन्यतम पाप क्यों हुआ ?' उत्तर देते हुए 'धर्मघोष' मुनि ने कहा— राजन् ! खंधक से अपने पूर्वभव में एक महापाप हुआ था। खंधक उस समय भी राजकुमार था। उसने उस समय एक काचर छीला था। छिलका उतारकर वह बहुत प्रसन्न हुआ कि बिना कहीं तोड़े मैंने पूरे काचर का छिलका एक साथ उतार दिया। उसी प्रसन्नता से कुमार के गाढ़ कर्मों का बंधन हुआ। उसी घोर पाप-बंध के परिणामस्वरूप यहाँ उसकी चमड़ी उतारी गई। तू भी उसी काचर में उस समय एक बीज था। तूने अपना बदला यहाँ ले लिया । -आवश्यक कथा (22) जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में एक नगर था, जिसके सौ दरवाजे होने से उसका नाम शतद्वार था । वहाँ के महाराज का नाम धनपति था। उस शतद्वार नगर के अग्निकोण में विजयवर्धमान नाम का ग्राम था। उस गांव में एक 'इकाई राठोर' नाम का ठाकुर था जो कठोर जाति का था। वह पांच सौ गांवों का स्वामी था । इकाई बहुत ही क्रूर अधर्मी और चण्डप्रकृति का था। वह पुण्य-पाप को कुछ भी नहीं मानता था । केवल जनता को जैसे-तैसे निचोड़कर धन इकट्ठा करना चाहता था। इतना ही नहीं, धन के लिए चोरी करवाना, राहगीरों को लुटवाना उसका प्रतिदिन का कार्य था। जनता के 254 कर्म-दर्शन

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