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मेढा भेजा और यह आज्ञा दी कि पन्द्रह दिन बाद इसे लौटा देना है, पर ध्यान रहे इस अवधि में उसका वजन कम या अधिक नहीं होना चाहिए।
राजा का यह आदेश पाकर ग्रामवासी चिंतातुर हो गये। ग्राम के बाहर एकत्रित हुए। रोहक को बुलाया। राजा के आदेश को सुनाया।
रोहक ने कहा—इसे खाने के लिए पर्याप्त चारा दो, पर इसको भेड़िये के पिंजरे के पास बांध दो। पर्याप्त चारा खाकर यह दुर्बल नहीं होगा और भेड़िये को देखकर बलवृद्धि को प्राप्त नहीं होगा। उन्होंने ऐसा ही किया। पन्द्रह दिन बाद राजा को मेढा लौटा दिया। राजा ने उसे तोला, पर मेढे के वजन में कोई अन्तर नहीं पाया। यह औत्पत्तिकी बुद्धि का उदाहरण है।
-आव. नि. 588/13
(7)
वैनयिकी बुद्धि एक नगर के राजा को यह ज्ञात हुआ कि शत्रु राजा नगर को घेरने के लिए सेना के साथ आ रहा है। राजा ने पानी के सारे साधनों को नष्ट करने के लिए पानी में विष डालने की योजना बनाई। उसने विष-वैद्यों को आमंत्रित किया। एक वैद्य चने जितना विष लेकर आया। यह देख राजा रुष्ट हो गया। वैद्य बोला-राजन्! यह शतसहस्रवेधी विष है। इससे लाखों-लाखों प्राणी मारे जा सकते हैं। राजा ने पूछा—इसका प्रमाण क्या है? वैद्य बोला—राजन्! कोई वृद्ध हाथी मंगाए। राजा के आदेश से एक अत्यन्त क्षीणकाय हाथी लाया गया। विष वैद्य ने उसकी पूंछ का एक बाल उखाड़ा और उसी बाल से उसमें विष संचरित कर दिया। उस विपन्न हाथी में वह विष फैलता हुआ दिखाई दिया और पूरा हाथी विषमय हो गया। वैद्य बोला—इस विष से यह हाथी भी विषमय हो गया है। जो व्यक्ति इसे खाएगा, वह भी विषमय हो जाएगा। यह इस विष का शतसहस्रवेधी होने का प्रमाण है। राजा ने पुनः पूछा-'क्या विष प्रतिकार का भी कोई उपाय है?' वैद्य बोला—हां है। वैद्य ने उसी बाल से वहीं एक औषधि का प्रक्षेप किया। हाथी स्वस्थ होकर चलने लगा। राजा वैद्य की वैनयिकी बुद्धि से प्रसन्न हो गया।
-आव. नि. 588/17
कर्म-दर्शन 237