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271. कर्म के अनुभाग का प्रदेश परिमाण क्या है ?
उ. कर्मों के अनुभाग सिद्ध आत्माओं के अनन्तवें भाग जितने होते हैं। सब अनुभागों का प्रदेश- परिमाण - रस विभाग का परिमाण सब जीवों से अधिक होता है।
272. प्रदेश बंध किसे कहते हैं?
उ. पुद्गल के एक परमाणु को प्रदेश कहते हैं। जैसे कोई मोदक 50 ग्राम का होता है और कोई 100 ग्राम का, इसी तरह बंधने वाले कर्मदलिकों के परिमाण में न्यूनाधिकता का होना प्रदेश बंध है । अथवा ग्रहण किये जाने पर भिन्न-भिन्न स्वभाव में परिणत होने वाली कर्मपुद्गल राशि अमुक-अमुक परिमाण में बँट जाती है, यह परिमाण विभाग ही प्रदेश बंध है।
273. प्रकृतिबंध एवं प्रदेशबंध में क्या अन्तर है ?
उ. . कर्म पुद्गलों का जीव के साथ बंधते समय अलग-अलग स्वभाव में परिणत होना प्रकृतिबंध कहलाता है तथा किस कर्म के हिस्से में कितने परमाणु पुद्गल आयेंगे यह संख्या विभाग प्रदेशबंध कहलाता है।
274.
एक समय में गृहीत (ग्रहण किये हुए) कर्म प्रदेशों का परिमाण क्या है ? उ. एक समय में गृहीत सब कर्मों का प्रदेशाग्र अनन्त है। वह अभव्य जीवों से अनन्त गुणा अधिक और सिद्ध आत्माओं के अनन्तवें भाग जितना होता
है।
275. प्रकृति आदि चारों बंध किसके आश्रित है ?
उ. प्रकृति बंध और प्रदेश बंध योग के आश्रित है। योग के तरतमभाव पर प्रकृति और प्रदेश बंध का तरतमभाव अवलम्बित है।
स्थिति बंध और अनुभाग बंध का आधार है कषाय । क्योंकि कषायों की तीव्रता या मंदता पर ही स्थिति और अनुभाग की न्यूनाधिकता अवलम्बित है। कषाय यदि मंद है तो कर्म की स्थिति और अनुभाग भी मंद होंगे और यदि कषाय तीव्र होंगे तो कर्म की स्थिति और अनुभाग भी तीव्र होगा ।
276. कर्म बंध के चार प्रकारों का क्रम क्या है ?
उ. बंध के चारों प्रकार एक साथ ही होते हैं। जीव कोई भी शुभाशुभ प्रवृत्ति करता है, तो उसके ये चारों बंध एक साथ शुरू होते हैं। इसको एक दृष्टान्त के द्वारा सम्यक् रूप से समझा जा सकता है। डॉक्टर रोगी के इंजेक्शन लगाता है, तो चारों कार्य एक साथ फलित होने प्रारम्भ हो जाते हैं। उन
कर्म - दर्शन 63