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अतः आयुष्य कर्म में जघन्य स्थिति में भी उत्कृष्ट अबाधा एवं उत्कृष्ट स्थिति में भी जघन्य अबाधा हो सकती है। (नोट — दूसरे कर्मों में अबाधामूल प्रकृति — अबाधा काल + उदयकाल सहित होते / होती है। पर आयुष्य कर्म की अबाधा का काल मूल प्रकृति से अलग है।
832. ऐसे कौनसे जीव हैं जो अपने जीवन में आयुष्य का बंध नहीं करते ? उ. चरम शरीरी । इनके अतिरिक्त सभी जीव जीवन में एक बार आगामी भव के आयुष्य का बंध अवश्य करते हैं।
833. एक भव में एक साथ कितने आयुष्य का उदय हो सकता है ? उ. एक भव में मात्र एक ही आयुष्य का उदय होता है।
834. आयुष्य कर्म को किसके समान कहा गया है ? उ. बेड़ी अथवा खोड़े के समान ।
835. आयुष्य कर्म का कार्य क्या है?
उ. बेड़ी से बंधा हुआ व्यक्ति जैसे उसको तोड़े बिना निकल नहीं सकता उसी प्रकार आयुष्य कर्म का भोग किये बिना प्राणी एक भव से दूसरे भव में नहीं
जा सकता।
836. आयुष्य कर्म भोगने के कितने हेतु हैं ?
उ. आयुष्य कर्म के उदय से जीव निश्चित अवधि तक उस प्रकार का जीवन जीता है। उसके अनुभाव (फल) चार हैं—
1. नारक रूप में
2. तिर्यंच रूप में
3. मनुष्य रूप में
4. देव रूप में
837. आयुष्य कर्म का बंध कौनसे गुणस्थान तक होता है ?
उ. आयुष्य कर्म का बंध तीसरे गुणस्थान को छोड़कर पहले से छठे गुणस्थान तक होता है। छठे में आयुष्य का बंध प्रारंभ हो जाए एवं सातवां गुणस्थान आ जाए तो सातवें में पूर्ण हो सकता है पर सातवें गुणस्थान में प्रारम्भ नहीं होता है।
838. आयुष्य कर्म का उदय कौनसे गुणस्थान में होता है ? उ. सभी गुणस्थानों में।
839. आयुष्य कर्म का उपशम एवं क्षयोपशम कौनसे गुणस्थान तक होता है ? उ. आयुष्य कर्म का उपशम व क्षयोपशम नहीं होता ।
180 कर्म-दर्शन