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829. जो निगोद के जीव एक मुहूर्त में 65, 536 भव करते हैं वे पर्याप्त होते हैं
या अपर्याप्त? उ. अपर्याप्त। तीन पर्याप्तियां तो वे पूर्ण कर लेते हैं, चौथी पर्याप्ति पूर्ण होने से
पहले ही उनका आयुष्य सम्पन्न हो जाता है, अत: वे अपर्याप्त ही होते हैं। 830. एक शरीर में उत्पन्न होने वाले अनन्त जीव क्या एक साथ जन्म-मरण करते
उ. एक शरीर में उत्पन्न होने वाले उन अनन्त जीवों का एक साथ ही जन्म
मरण करता है। 831. आयुष्य कर्म का अबाधाकाल कितना होता है? उ. सात कर्मों के अबाधाकाल एवं आयुष्य कर्म के अबाधाकाल में अन्तर
होता है। जघन्य स्थिति बंध में जघन्य अबाधाकाल एवं उत्कृष्ट स्थिति बंध में उत्कृष्ट अबाधाकाल होता है। अबाधा का यह नियम केवल सात कर्मों के लिए है। सात कर्मों की अबाधा स्थिति के प्रतिभाग के अनुसार होती है पर आयुष्य कर्म के साथ ऐसा नियम नहीं है। आयुष्य कर्म की उत्कृष्ट स्थिति में भी जघन्य अबाधा हो सकती है और जघन्य स्थिति में भी उत्कृष्ट अबाधा हो सकती है। क्योंकि आयुष्य कर्म का अबाधाकाल स्थिति के प्रतिभाग के अनुसार नहीं होता। आयुष्य कर्म की अबाधा में चार विकल्प बनते हैं1. उत्कृष्ट स्थिति में उत्कृष्ट अबाधा-जब कोई मनुष्य अपनी एक पूर्व
कोटि की आयु में तीसरा भाग शेष रहने पर तेंतीस सागर की आयु का बंध करता है तब उत्कृष्ट स्थिति में उत्कृष्ट अबाधा होती है। 2. उत्कृष्ट स्थिति में जघन्य अबाधा–अगर 1 पूर्व कोटि आयुष्य वाला मनुष्य अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आयुष्य शेष रहने पर उत्कृष्ट तेंतीस सागर आयुष्य का बंध करता है तो उत्कृष्ट स्थिति में जघन्य अबाधा होती
3. जघन्य स्थिति बंध में उत्कृष्ट अबाधा–अगर कोई 1 पूर्व कोटि
आयुष्य वाला मनुष्य एक पूर्व कोटि का तीसरा भाग शेष रहने पर जघन्य स्थिति का बंध करता है जो अन्तर्मुहूर्त प्रमाण भी हो सकती है
तब जघन्य स्थिति बंध में उत्कृष्ट अबाधा होती है। 4. जघन्य स्थिति में जघन्य अबाधा–अगर कोई जीव अन्तर्मुहूर्त आयु
शेष रहने पर पर-भव की अन्तर्मुहूर्त प्रमाण आयु बांधे तो जघन्य स्थिति में जघन्य अबाधा होती है।
। कर्म-दर्शन 179