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927. वज्रऋषभनाराच संहनन नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से वज्रऋषभनाराच संहनन प्राप्त होता है, उसे
वज्रऋषभनाराच संहनन नाम कर्म कहते हैं। 928. वज्रऋषभनाराच संहनन किसे कहते हैं? उ. वज्रऋषभनाराच-वज्र-कील, ऋषभ-वेष्टन और नाराच का अर्थ है मर्कट
बंध। जिस संहनन में अपनी माता की छाती से चिपके हए मर्कट-बंदर के बच्चे की-सी आकृति वाली संधि की दोनों हड्डियां परस्पर गुंथी हुई हो, उन पर तीसरी हड्डी का परिवेष्टन हो और चौथी हड्डी की कील उन तीनों का भेदन करती हुई हो, ऐसी सुदृढ़तम अस्थि-रचना को वज्रऋषभनाराच
संहनन कहा जाता है। 929. ऋषभनाराच संहनन नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. ऋषभनाराच संहनन में हड्डियों की आंटी और वेष्टन होते हैं, कील नहीं
होती। जिस कर्म के उदय से ऋषभनाराच संहनन प्राप्त होता है उसे ऋषभ
नाराच संहनन नामकर्म कहते हैं। 930. नाराच संहनन नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. नाराच संहनन में हड्डियों की आंटी होती है लेकिन वेष्टन और कील नहीं
होती। जिस कर्म के उदय से नाराच संहनन प्राप्त होता है उसे नाराच संहनन
नाम कर्म कहते हैं। 931. अर्धनाराच संहनन नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. अर्धनाराच संहनन में हड्डी का एक छोर मर्कट बंध से बंधा हुआ होता
है और दसरा छोर कील से भेदा हुआ होता है। जिस कर्म के उदय से
अर्धनाराच संहनन की प्राप्ति हो उसे अर्धनाराच संहनन नाम कर्म कहते हैं। 932. कीलिका संहनन नाम कर्म किसे कहते हैं? उ. कीलिका संहनन में हड्डियां केवल एक कील से जुड़ी हुई होती हैं, मर्कट
बंध आदि कुछ नहीं होते। जिस नाम कर्म के उदय से कीलिका संहनन की
प्राप्ति हो उसे कीलिका संहनन नामकर्म कहते हैं। 933. सेवार्त संहनन नामकर्म किसे कहते हैं? उ. सेवार्त संहनन में हड्डियां पर्यन्त भाग में एक-दूसरे से स्पर्श करती हुई-सी
होती है। जिस कर्म के उदय से सेवा संहनन की प्राप्ति हो, उसे सेवार्त संहनन नामकर्म कहते हैं।
198 कर्म-दर्शन