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गोत्र कर्म
1045. गोत्र कर्म किसे कहते हैं? उ. गोत्र का अर्थ है-कुलक्रमागत आचरण। 1. जो पुद्गल आत्मा की प्रतिष्ठा या अप्रतिष्ठा में निमित्त बनते हैं, वह है
गोत्र कर्म। 2. जीव को अच्छी या बुरी दृष्टि से देखे जाने में निमित्त बनने वाला कर्म
गोत्र कर्म है। 1046. गोत्र कर्म की उत्तर प्रकृतियां कितनी हैं?
उ. गोत्र कर्म की उत्तर प्रकृतियां दो हैं__(1) उच्च गोत्र और (2) नीच गोत्र। 1047. गोत्र कर्म पुण्य रूप है अथवा पाप रूप हैं?
उ. उच्च गोत्र पुण्य रूप है और नीच गोत्र पाप रूप है। 1048. गोत्र कर्म बंध के कितने हेतु हैं?
उ. गोत्र कर्म बंध के आठ कारण हैं(1) जाति (2) कुल (3) बल (4) रूप (5) तप (6) श्रुत (7) लाभ (8) ऐश्वर्य इन आठ बातों का मद-(अहं) न करना उच्च गोत्र कर्म बंध का कारण है
और इनका मद (अहं) करना नीच गोत्र कर्म बंध का कारण है। 1049. उच्च गोत्र कर्म भोगने के कितने हेतु हैं?
उ. उच्च गोत्र कर्म के उदय से जीव विशिष्ट बनता है उसके अनुभाव आठ
(1) जाति विशिष्टता (3) बल विशिष्टता (5) तप विशिष्टता (7) लाभ विशिष्टता
(2) कुल विशिष्टता (4) रूप विशिष्टता (6) श्रुत विशिष्टता (8) ऐश्वर्य विशिष्टता
1. कथा सं. 37
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कर्म-दर्शन 219