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कषाय जघन्य
उत्कृष्ट प्रत्याख्यानी चतुष्क असंख्यातवां भाग कम' चालीस करोड़ाकरोड़ सागर संज्वलन क्रोध दो महिना
चालीस करोड़ाकरोड़ सागर संज्वलन मान एक महिना
चालीस करोड़ाकरोड़ सागर संज्वलन माया पन्द्रह दिन
चालीस करोड़ाकरोड़ सागर संज्वलन लोभ अन्तर्मुहूर्त
चालीस करोड़ाकरोड़ सागर 727. कौनसा कषाय चतुष्क उदय में आने पर कितने समय तक रह सकता है? उ. अनंतानुबंधी कषाय चतुष्क उदय में आने पर—यावज्जीवन।
अप्रत्याख्यानी कषाय चतुष्क उदय में आने पर एक वर्ष। प्रत्याख्यानी कषाय चतुष्क उदय में आने पर—एक महिना। संज्वलन कषाय चतुष्क उदय में आने पर-पन्द्रह दिन। अर्थात् एक बार उदय में आने पर उतने समय तक उनका प्रभाव रह सकता
728. कषाय की अवस्था में कौनसी गति प्राप्त होती है? उ. अनन्तानुबंधी कषाय की अवस्था में-नरकगति।
अप्रत्याख्यानी कषाय की अवस्था में—तिर्यंचगति। प्रत्याख्यानी कषाय की अवस्था में—मनुष्यगति।
संज्वलन कषाय की अवस्था में—देवगति। 729. किस गति के जीवों के सर्व विरति के परिणाम होते हैं? उ. केवल मनुष्य गति के जीवों के ही सर्व विरति के परिणाम होते हैं। शेष तीन
गतियों के जीव सर्वविरति जीवन स्वीकार नहीं कर सकते। क्योंकि उनके
तविषयक कषायों का क्षयोपशम नहीं होता। 730. चारित्र मोहनीय की उपरोक्त सोलह प्रकृतियों को किस उपमा से उपमित
किया गया है? अथवा इनके लक्षण क्या हैं? उ. अनन्तानुबंधी क्रोध-पत्थर की रेखा के समान।
अनन्तानुबंधी मान—पत्थर के स्तम्भ के समान।
1. सभी कर्मों की जघन्य स्थिति का बंध-नौवें, दसवें गुणस्थान को छोड़कर एकेन्द्रिय के
होता है एवं उत्कृष्ट स्थिति का बंध संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक मिथ्यात्वी एवं संक्लिष्ट
परिणाम वाले के होता है। 2. संज्वलन कषाय का जघन्य बंध नौवें गुणस्थान में होता है।
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