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775. चारित्र मोह कर्म के क्षय से जीव क्या प्राप्त करता है ?
उ. चारित्र मोह कर्म के क्षय से जीव क्षायिक यथाख्यात चारित्र की प्राप्ति
होती है। वह वीतराग बन जाता है। उसी भव में मुक्त हो जाता है। क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति से पहले अगर आयुष्य का बंध नहीं किया हो तो जीव उसी भव में मोक्ष प्राप्त कर लेता है और पूर्व में आयुष्य का बंध हो गया हो तो तीसरे भव का उल्लंघन नहीं करता है।
776. उदय के तेंतीस बोलों में मोहनीय कर्म के उदय के कितने बोल पाते हैं? उ. उदय के तेंतीस बोलों में -4 कषाय, 3 वेद, 3 अशुभ लेश्या, मिथ्यात्व और अव्रत- ये 12 बोल मोहनीय कर्म के उदय से हैं। आहारता व सयोगिता — ये दो बोल नाम व मोहनीय कर्म के उदय से ।
777. मोहनीय कर्म के उदय से प्राप्त 12 बोलों में सावद्य कितने ? निरवद्य
कितने ?
उ. बारह ही बोल सावद्य हैं।
कर्म-दर्शन 167