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क्रोध-मान-माया-लोभ को उत्पन्न करें कि जिससे सम्यक्त्व तो न रुके किन्तु थोड़ी-सी भी पाप विरति (प्रत्याख्यान) न हो सके उसे क्रमश:
अप्रत्याख्यानावरणीय क्रोध-मान-माया और लोभ कहते हैं। 721. अप्रत्याख्यान कषाय किसका अभिघात करता है? उ. अप्रत्याख्यान कषाय के उदय से किसी भी तरह की एक देश या सर्वदेश
विरति नहीं होती। जीव महाव्रत या श्रावक के व्रतों को स्वीकार नहीं कर
सकता।' 722. प्रत्याख्यानावरणीय कषाय किसे कहते हैं? उ. जिनके उदय से सम्यक्त्व और देश और प्रत्याख्यान तो न रुके
पर सर्व प्रत्याख्यान न हो सके, सर्व सावध विरति न हो सके उन्हें
प्रत्याख्यानावरणीय कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ) कहते हैं। 723. प्रत्याख्यान चतुष्क से किसका अभिघात होता हैं? उ. इस कर्म के उदय से विरताविरति-एक देश रूप संयम होने पर भी सर्व
___ चारित्र की प्राप्ति नहीं होती। 724. संज्वलन कषाय (चतुष्क) किसे कहते हैं? उ. जिस कर्म के उदय से सर्वप्रत्याख्यान होने पर भी यथाख्यात चारित्र नहीं
हो पाता। वह संज्वलन कषाय है। श्वेताम्बर विद्वानों के अनुसार जो कर्म संविग्न और सर्व पाप की विरति से युक्त को भी क्रोधादि युक्त करता है। शब्दादि विषयों को प्राप्त कर जिससे जीव बार-बार कषाय युक्त होता है,
वह संज्वलन कषाय है। 725. संज्वलन कषाय चतुष्क से किसका अभिघात होता है?
उ. यथाख्यात चारित्र का। 726. चारित्र मोह की प्रकृतियों की स्थिति क्या है? उ. कषाय
उत्कृष्ट अनंतानुबंधी चतुष्क एक सागर के 3/7 भाग चालीस करोड़ाकरोड़ सागर अप्रत्याख्यानी चतुष्क में पल्योपम का चालीस करोड़ाकरोड़ सागर
जघन्य
1. कथा सं. 28 2. कथा सं. 29
158 कर्म-दर्शन