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707. मिश्र मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से जीव को क्या प्राप्त होता है?
उ. मिश्र मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से सम्यक् मिथ्यादृष्टि उज्ज्वल होती है। 708. सम्यक् मिथ्यादृष्टि जीव कौन होता है? ___ उ. सम्यक् मिथ्यादृष्टि जीव निश्चित रूप से भवस्थ पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय
होता है। 709. दर्शन-मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से क्या प्राप्त होता है? उ. दर्शन-मोहनीय कर्म के क्षयोपशम से समुच्चय रूप से शुद्ध श्रद्धा उत्पन्न
होती है। 710. दर्शन-मोहनीय की तीन प्रकृतियों में देशघाती कितनी और सर्वघाती
कितनी? उ. सम्यक्त्व मोहनीय और मिश्रमोहनीय ये दो देशघाती और मिथ्यात्व
मोहनीय सर्वघाती। 711. दर्शन मोहनीय कर्म के सम्पूर्ण क्षय से जीव क्या प्राप्त करता है? उ. क्षायिक सम्यक्त्व। यह सम्यक्त्व सम्पूर्णत: विशुद्ध और अटल होता है।
क्षायिक सम्यक्त्व प्राप्त होने के बाद वापस नहीं जाता है। 772. दर्शन मोह के क्षय होने पर जीव कौनसा गुणस्थान प्राप्त करता है?
उ. निवृत्ति बादर गुणस्थान। 713. चारित्र मोहनीय कर्म किसे कहते हैं?
उ. जो सम्यक् चारित्र-आचरण को न होने दे उसे चारित्र मोहनीय कर्म कहते
714. चारित्र मोहनीय कर्म कितने प्रकार का है? उ. चारित्र मोहनीय कर्म दो प्रकार का हैं
(1) कषाय चारित्र मोहनीय कर्म, (2) नो कषाय चारित्र मोहनीय कर्म।
1. वह पहले मिथ्यादृष्टि होता है, फिर शुभ अध्यवसायों के प्रयोग से उपचित मिथ्यात्व
पुद्गलों को तीन भागों में विभक्त करता है—मिथ्यात्व, सम्यक् मिथ्यात्व और सम्यक्त्व। जब जीव मिथ्यात्व पुद्गलों को विशुद्ध कर मिथ्यात्व के उदय को सम्यक् मिथ्यात्व के उदय के रूप में परिणत करता है, तब वह जिन वचनों पर श्रद्धा और अश्रद्धा करना है, यह सम्यक् मिथ्यादृष्टि गुणस्थान है। इसका कालमान अन्तर्मुहूर्त है। उसके पश्चात् वह सम्यक्त्व अथवा मिथ्यात्व को प्राप्त करता है।
156 कर्म-दर्शन