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332. दूसरे एवं तीसरे गुणस्थानों में कितने कर्मों की सत्ता होती है ?
उ. इन दो गुणस्थानों में तीर्थंकर नामकर्म की सत्ता न होने से 147 प्रकृतियों की सत्ता संभव है। तीर्थंकर गोत्र बांध कर कोई जीव दूसरे एवं तीसरे गुणस्थान को प्राप्त नहीं कर सकता । अतः 148 प्रकृतियां सत्तायोग्य मानी गयी है। 333. चौथे गुणस्थान से सातवें गुणस्थान तक सत्ता में कितनी प्रकृतियां संभव हैं?
उ. चौथे से लेकर सातवें गुणस्थान तक जो क्षायिक सम्यक्त्वी है तथा चरमशरीरी है उनके अनन्तानुबंधी कषाय की चार, दर्शन मोह की तीन एवं देव, नरक व तिर्यञ्च आयु की संभव सत्ता न होने से 138 प्रकृतियों की सत्ता मानी गयी है। जो चरम शरीरी हैं एवं जिसे अभी तक क्षायक सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं हुई है उनके 145 प्रकृतियों की सत्ता मानी गयी है। (तीन आयु को छोड़कर) क्षयोपशम सम्यक्त्वी तथा औपशमिक सम्यक्त्वी जो अचरम शरीरी है उनके 148 प्रकृतियों की संभव सत्ता मानी गयी है। जो क्षायिक सम्यक्त्वी अचरम - शरीरी है उनके 141 प्रकृतियों की सत्ता होती है। (संभव सत्ता) (अनन्तानुबंधी कषाय की 4 एवं दर्शन मोह की तीन प्रकृतियों को छोड़कर) ।
334. आठवें से ग्यारहवें गुणस्थान में कितनी कर्म प्रकृतियों की सत्ता हो सकती है ?
उ. आठवें से ग्यारहवें गुणस्थान पर्यन्त अनन्तानुबंधी की चार तथा नरक एवं तिर्यञ्च आयु को छोड़ 142 प्रकृतियों की सत्ता इन चार गुणस्थानों में संभव है।
335.
क्षपक श्रेणी लेने वाले जीवों के नवमें गुणस्थान में सत्ता का क्या कम है ? उ नवमें गुणस्थान के प्रथम भाग में क्षपक श्रेणी वाले जीवों में 138 प्रकृतियों की सत्ता होती है। नवमें गुणस्थान के नव भाग होने हैं। दूसरे भाग में 122 प्रकृतियों की सत्ता होती है। तीसरे भाग में 114 एवं चौथे भाग में 109 प्रकृतियों की, सातवें भाग में 105, आठवें भाग में 104 एवं नवमें भाग में 103 प्रकृतियां सत्तागत होती हैं।
336. दसवें, ग्यारहवें, बारहवें गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों की सत्ता होती हैं ? उ. दसवें गुणस्थान में 102 प्रकृतियों की, बारहवें गुणस्थान में द्विचरम समय
पर्यंत 101 प्रकृतियां सत्ता में होती है । द्विचरम समय में निद्रा और प्रचला ये दो प्रकृतियां क्षय हो जाने से अन्तिम समय में 99 प्रकृतियां सत्तागत होती हैं।
कर्म-दर्शन 77