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644. सम्यक्त्व के कितने हेतु हैं? उ. सम्यक्त्व के दो हेतु हैं(1) निसर्ग-बिना किसी प्रयत्न के सहज कर्म विलय से जो सम्यक्त्व
उपलब्ध होती है, वह निसर्ग सम्यक्त्व है। (2) अभिगम-(निमित्तज)-उपदेश या किसी बाह्य निमित्त से उपलब्ध
सम्यक्त्व अभिगम कहलाती है। 645. सम्यक्त्व के कितने प्रकार हैं? उ. सम्यक्त्व के मुख्यतः पांच प्रकार हैं-औपशमिक, सास्वादन,
क्षायोपशमिक, वेदक और क्षायिक। 646. औपशमिक सम्यक्त्व किसे कहते हैं? उ. 1. दर्शन-मोहनीय का पूर्णरूप से उपशम होने पर जो सम्यक्त्व प्राप्त होता
है वह औपशमिक सम्यक्त्व है। 2. उपशम श्रेणी में आरूढ़ व्यक्ति के दर्शन सप्तक प्रकृतियों का उपशम होने
पर औपशमिक सम्यक्त्व होता है। अथवा जो तीन पुंज (सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और मिश्र) नहीं बनाता, जिसका मिथ्यात्व क्षीण नहीं होता,
उसके उपशम सम्यक्त्व होता है। 647. उपशम श्रेणी किसे कहते हैं?
उ. मोहकर्म के उपशम की प्रक्रिया' को उपशम श्रेणी कहते हैं।
1. मोहकर्म की प्रकृतियों के उपशम का क्रम
अनन्तानुबंधी कषाय चतुष्क-युगपत्, दर्शनत्रिक-युगपत् नपुंसकवेद, स्त्रीवेद, हास्यषट्क, पुरुषवेद अप्रत्याख्यान–प्रत्याख्यान-क्रोध-युगपत् संज्वलन-क्रोध अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान-मान-युगपत् संज्वलन-मान अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान-माया-युगपत् संज्वलन-माया अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान-लोभ युगवत् संज्वलन लोभ। विशेष—श्रेणी प्रारम्भ करने वाला यदि नपुंसक हो तो पहले स्त्रीवेद, फिर पुरुषवेद और
अन्त में नपुंसकवेद का उपशमन करता है। यदि श्रेणी प्रारम्भ करने वाली स्त्री हो तो पहले नपुंसकवेद, फिर पुरुषवेद और अन्त में स्त्रीवेद का उपशमन करती है।
HE कर्म-दर्शन 145