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686. सम्यक्त्व (दर्शन सम्पन्नता) का क्या परिणाम है? उ. मिथ्यात्व से प्रतिक्षण सघन कर्मबंध होता है। जिसका परिणाम है-जन्म,
जरा, मृत्यु वाले संसार में परिभ्रमण। मिथ्यात्व से प्रतिक्रमण कर सम्यक्त्व में स्थित होने का परिणाम है
देवत्व, मनुष्यत्व की प्राप्ति और अंत में मोक्ष। 687. सम्यक्त्व प्राप्ति और ज्ञान का क्या साथ है? उ. विभंगज्ञानी सम्यक्त्व में परिणत होता हुआ तत्काल तीन ज्ञान प्राप्त करता
है—मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान। विभंगज्ञान से रहित मिथ्यादृष्टि सम्यक्त्व में परिणत होता हुआ मतिज्ञान
और श्रुतज्ञान को प्राप्त करता है।' 688. क्या सम्यक्त्व और मिथ्यात्व कर्म पुद्गलों का एक-दूसरे में संक्रमण हो
सकता है? उ. मिथ्यात्व पुद्गलों का सम्यक्त्व और मिश्र (सम्यक्-मिथ्यात्व) के पुद्गलों
में संक्रमण हो सकता है। मिश्र पुद्गलों का सम्यक्त्व और मिथ्यात्व के पुद्गलों में संक्रमण हो सकता है। सम्यक्त्व के पुद्गलों का मिश्र में
संक्रमण नहीं होता। 689. सम्यक्त्व प्राप्ति के समय जीव कितने पूंजवाला होता है? उ. केवली आदि की वाणी को सुनकर अथवा जातिस्मरण आदि के द्वारा
सम्यक्त्व के स्वरूप को जानकर अपूर्वकरण में वर्तमान जीव वर्धमान परिणामधारा के कारण एक साथ मिथ्यात्व पुद्गलों के तीन पुंज करता है-मिथ्यात्व पुद्गल, मिश्र पुद्गल और सम्यक्त्व पुद्गल। जब तक मिथ्यात्व क्षीण नहीं होता, तब तक सम्यक्त्वी नियमत: त्रिपुंजी होता है। मिथ्यात्व क्षीण होने पर द्विपुंजी, मिश्रपुंज के क्षीण होने पर एकपुंजी
और सम्यक्त्व पुंज के क्षीण होने पर अपुंजी अर्थात् क्षपक हो जाता है।' 690. सम्यक्त्व के अयोग्य कौन होते हैं? उ. तीन प्रकार के व्यक्ति सम्यक्त्व के अयोग्य अथवा कठिनाई से प्रतिबोध
प्राप्त करने वाले होते हैंदुष्ट-तत्त्व या तत्त्वप्रज्ञापक के प्रति द्वेष रखने वाले।
1. बृहत्कल्पभाष्य-125 2. अपूर्वकरण-जो पहले प्राप्त नहीं हुआ, ऐसा अध्यवसाय। 3. बृहत्कल्पभाष्य-111, 117 152 कर्म-दर्शन