________________
582. स्त्यानर्द्धि निद्रा किसे कहते हैं? उ. यह निद्रा प्रकृष्टतर अशुभ अनुभाव वाली है। इसमें चेतना प्रगाढ़ मूर्छा से
जम जाती है। इस प्रकृति का उदय होने पर व्यक्ति में राग-द्वेष का प्रबल उदय होता है और उस समय वज्रऋषभनाराच संहनन वाला जीव हो तो उसमें वासुदेव के बल से आधा-बल जाग जाता है। अन्य संहनन वाले का इस निद्रा में स्वयं के बल से सात-आठ गुणा बल होता है। व्यक्ति जो सोचता है उसे वह इस नींद में सिद्ध कर लेता है। इसलिए उसे चिन्तित
अर्थ को सिद्ध करने वाली निद्रा कहा जाता है। 583. क्या देवता नींद लेते हैं? उ. नहीं। क्योंकि देवता के दर्शनावरणीय कर्म का प्रदेशोदय नहीं है। इसलिए
देवता को नींद नहीं आती। 584. स्त्यानर्द्धि निद्रा वाला मरकर कहां जाता है?
उ. नरकगति में। 585. दर्शनावरणीय कर्म की उत्तर प्रकृतियों में देशघाती कितनी और सर्वघाति
कितनी हैं? उ. चक्षु, अचक्षु और अवधि दर्शनावरणीय कर्म देशघाती हैं और शेष छह
सर्वघाति। सर्वघाती दर्शनावरणीय कर्मों में केवलदर्शनावरणीय कर्म
प्रगाढ़तम है। 586. दर्शनावरणीय कर्म-बंध के कितने हेतु हैं? उ. दर्शनावरणीय कर्म-बंध के छः हेतु हैं
1. दर्शन-प्रत्यनीकता-दर्शन या दर्शनी से प्रतिकूलता रखना। 2. दर्शन निह्नव-दर्शन या दर्शनदाता का अल्पपन करना अर्थात् दर्शनी
को कहना कि वह दर्शनी नहीं है। 3. दर्शनान्तराय-दर्शन को प्राप्त करने में विघ्न डालना। 4. दर्शन-प्रद्वेष—दर्शन या दर्शनी से द्वेष रखना। 5. दर्शन-आशातना-दर्शन या दर्शनी की अवहेलना करना। 6. दर्शन-विसंवादन-दर्शन या दर्शनी के वचनों में विसंवाद अर्थात्
विरोध दिखाना। 587. द्रव्यनिद्रा और भावनिद्रा किसे कहते हैं और ये किन कर्मों का उदय है?
उ. द्रव्य-निद्रा सुप्तावस्था है। यह दर्शनावरणीय कर्म का उदय निष्पन्न भाव है।
कर्म-दर्शन 129