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575. दर्शनावरणीय कर्म की उत्तर प्रकृतियां कितनी हैं ?
उ. आगमों में दर्शनावरणीय कर्म की नौ उत्तर प्रकृतियां बताई गई हैं—
1. चक्षुदर्शनावरण
3. अवधिदर्शनावरण
5. निद्रा
7. प्रचला
१. स्त्यानर्द्धि
2. अचक्षुदर्शनावरण 4. केवलदर्शनावरण
6. निद्रानिद्रा
8. प्रचलाप्रचला
576. चक्षुदर्शनावरणीय कर्म किसे कहते हैं?
उ. चक्षु द्वारा होने वाले सामान्य बोध को आवृत्त करने वाला कर्म चक्षुदर्शनावरणीय कर्म कहलाता है। इस कर्म के उदय से जीव के आंखें नहीं होती अथवा होने पर भी ज्योति नष्ट हो जाती है।
577. अचक्षुदर्शनावरणीय कर्म किसे कहते हैं?
उ. नेत्रों को छोड़कर अन्य इन्द्रियों और मन के द्वारा होने वाले सामान्य बोध को आवृत्त करने वाला कर्म अचक्षुदर्शनावरणीय कर्म कहलाता है। इस कर्म के उदय से जीव के नेत्र से भिन्न इन्द्रियां तथा मन नहीं होते अथवा होने पर भी अकार्यकारी होते हैं।
578. अवधिदर्शनावरणीय कर्म किसे कहते हैं?
उ. इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना आत्मा को रूपी द्रव्यों का जो सामान्य बोध होता है, उसे अवधिदर्शन कहते हैं। ऐसे दर्शन को आवृत्त करने वाले कर्म अवधिदर्शनावरणीय कर्म कहलाता है।
579. केवलदर्शनावरणीय कर्म किसे कहते हैं ?
उ. सर्व द्रव्य और पर्यायों का युगपत् साक्षात् सामान्य अवबोध को आवृत्त करने वाला कर्म केवलदर्शनावरणीय कर्म कहलाता है।
580. निद्रा और निद्रा-निद्रा में क्या अन्तर है ?
उ. निद्रा — सोया हुआ व्यक्ति सुख से जाग जाए, वैसी निद्रा ।
निद्रा - निद्रा - जिस कर्म के उदय से सोया हुआ व्यक्ति कठिनाई से जागता है वह निद्रा निद्रा है।
581.
प्रचला और प्रचला - प्रचला में क्या अन्तर है ?
उ.
* प्रचला — जिस कर्म के उदय से बैठे-बैठे ही नींद आती है।
* प्रचला-प्रचला — जिस कर्म के उदय से खड़े-खड़े या चलते-फिरते नींद आती है।
128 कर्म-दर्शन