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388. उपशम कर्म की एक अवस्था है, फिर यह शुभ है या अशुभ, सावध है या
निरवद्य? उ. मोहकर्म की उदयमान अवस्था के बीच में अन्तर्मुहूर्त तक सर्वथा अनुदय
रहना उपशम है। उस समय में प्रकृति के अनुरूप सम्यक्त्व व चारित्र दोनों की
प्राप्ति होती है, इसलिये वह अशुभ नहीं, शुभ है। सावद्य नहीं निरवद्य है। 389. उपशम श्रेणी से गिरने के पश्चात् जीव संसार में उत्कृष्ट कितने काल तक
भ्रमण कर सकता है? उ. अर्ध पुद्गल परावर्तन काल तक। 390. उपशम श्रेणी वाला जीव यदि ग्यारहवें गुणस्थान में काल कर जाता है तो
उसकी गति क्या है? ___ उ. पांच अनुत्तर विमान। 391. उपशम श्रेणी के अधिकारी कौन होते हैं? उ. उपशम श्रेणी में आरोहण करते समय जीव अप्रमत्तसंयत होता है। उपशम
श्रेणी से गिरने पर वह पुनः प्रमत्त संयत अथवा अविरत हो जाता है। कुछ आचार्य ऐसा भी मानते हैं कि अविरत, देशविरत, प्रमत्तसंयत और
अप्रमत्तसंयत-इनमें से कोई भी जीव उपशम श्रेणी पर आरोहण कर सकता है। 392. उपशम श्रेणी वाला जीव एक भव में उत्कृष्टत: उपशम श्रेणी कितनी बार
ले सकता है? उ. दो बार। अनेक भवों की अपेक्षा चार बार। 393. उपशम कौनसे गुणस्थान तक होता है? उ. दर्शन मोह का उपशम 4 से 11वें गणस्थान तक होता है। चारित्र मोह का
पूरा उपशम एक 11वें गुणस्थान में होता है। कुछ प्रकृतियों का उपशम 8वें, 9वें तथा 10वें गुणस्थानों में भी होता है। उपशान्त अवस्था को प्राप्त कर्म में उद्वर्तन, अपवर्तन एवं संक्रमण हो सकता है पर उसकी उदीरणा नहीं हो
सकती है। 394. उपशम श्रेणी से पतित होने पर गुणस्थानों में आने का क्रम क्या है? उ. उपशम श्रेणी चढ़ते समय जिस-जिस गुणस्थान में जिन-जिन प्रकृतियों का
बंधविच्छेद किया था, उस-उस गुणस्थान में आने पर वे प्रकृतियां पुनः बंधने लगती है। उपशम श्रेणी से पतित होते-होते जब जीव सातवें या छठे गुणस्थान में आया है उस समय संभल जाता है तो पुनः उपशम श्रेणी का आरोहण कर
कर्म-दर्शन 89