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525. ज्ञान सम्पन्नता से जीव क्या प्राप्त करता है ?
उ. ज्ञान सम्पन्नता से वह सब पदार्थों को जान लेता है। ज्ञान सम्पन्न जीव चार गति रूप चार अन्तोवाली अटवी में विनष्ट नहीं होता। जिस प्रकार ससूत्र (धागे में पिरोयी हुई) सूई गिरने पर भी गुम नहीं होती, उसी प्रकार ससूत्र (श्रुत सहित ) जीव संसार में रहने पर भी विनष्ट नहीं होता ।
ज्ञान सम्पन्न व्यक्ति अवधि आदि विशिष्ट ज्ञान, विनय, तप और चारित्र के योगों को प्राप्त करता है तथा स्व- समय और पर समय की व्याख्या या तुलना के लिए प्रामाणिक रूप माना जाता है। 1
एक अज्ञानी करोड़ों वर्षों में जितने कर्मों को क्षीण करता है, उतने कर्मों को त्रिगुप्त ज्ञानी उच्छ्वास मात्र में क्षीण कर देता है। 2
526. चारों गति के जीवों में कितने व कौन-कौन से ज्ञान पाते हैं?
उ.
* सात नारकी, सर्वदेवता, संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय में ज्ञान तीन पाते हैंमतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान ।
* गर्भज मनुष्य में ज्ञान पांच पाते हैं।
* पांच स्थावर, असंज्ञी मनुष्य, 56 अन्तद्वीप के युगलियों में ज्ञान एक भी नहीं पाता ।
* तीन विकलेन्द्रिय, असंज्ञी तिर्यञ्च पचेन्द्रिय, 30 अकर्मभूमि के युगलियों में ज्ञान दो पाते हैं— मतिज्ञान व श्रुतज्ञान ।
* सिद्धों में ज्ञान एक—केवलज्ञान ।
527. अज्ञान किसे कहते हैं?
उ. 1. ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से होने वाले ज्ञान के अभाव को अज्ञान कहते हैं।
2. ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होने वाले मिथ्यात्वी के ज्ञान को अज्ञान कहते हैं।
528. अज्ञान कर्म का उदय है या क्षयोपशम ?
उ. अज्ञान ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम है तथा ज्ञान का अभाव ज्ञानावरणीय कर्म का उदय है।
1. उत्तराध्ययन 29/60
2. उत्तराध्ययन शांतवृति प. 68 1
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