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3. चार ज्ञान - मति, श्रुत, अवधि और मनः पर्यव । 4. एक ज्ञान - केवलज्ञान ।
517. मनुष्य जन्म के साथ ज्ञान लाता है, अथवा जन्म के पश्चात् उत्पन्न होता है ?
उ. प्राणी जन्म के साथ ज्ञान लाता है। लब्धि - इन्द्रिय जन्म के साथ आती है। द्रव्येन्द्रिय का निर्माण जन्म के साथ होता है, अवधिज्ञान जन्म के साथ भी होता है और जन्म के उत्तरकाल में साधना के द्वारा भी उपलब्ध होता है। 518. ज्ञान की सीमा क्या है ?
उ.
1. ज्ञेय अनन्त है। इसलिए ज्ञान भी अनन्त है । मतिज्ञान और श्रुतज्ञान की सीमा है। उनके द्वारा मूर्त द्रव्य जाना जा सकता है अमूर्त द्रव्य नहीं । मूर्त में भी स्थूल पर्याय को जाना जा सकता है, सूक्ष्म पर्याय को नहीं जाना
जा सकता।
2. अवधिज्ञान मूर्त द्रव्यों को जानता है।
3. मनः पर्यवज्ञान मनोवर्गणा के पुद्गलों को जानता है । 4. केवलज्ञान की कोई सीमा नहीं है।
519. क्या ज्ञान के द्वारा द्रव्य को जाना जा सकता है ?
उ.
मतिज्ञान के द्वारा पर्याय का ही ज्ञान होता है, द्रव्य का ज्ञान नहीं होता । * श्रुतज्ञान के द्वारा श्रुत ग्रन्थों के आधार पर द्रव्य का ज्ञान होता है, उसका प्रत्यक्ष ज्ञान नहीं होता ।
* विशिष्ट अवधिज्ञान के द्वारा केवल मूर्त द्रव्य का विशिष्ट प्रत्यक्षीकरण किया जा सकता है।
* मनः पर्यवज्ञान मनोवर्गणा के पर्यायों को जान सकता है, द्रव्यों को नहीं। * केवलज्ञान के द्वारा मूर्त-अमूर्त सभी द्रव्यों तथा पर्यायों का ज्ञान होता है।
520. पांचों ज्ञानों में विकास की दृष्टि से न्यूनाधिकता क्या है ?
उ. जघन्य मतिश्रुत से जघन्य अवधिज्ञान अनन्तगुणा अधिक, उससे जघन्य मनःपर्यवज्ञान अनन्तगुणा अधिक, उससे उत्कृष्ट मनः पर्यवज्ञान अनन्त गुणा अधिक, उससे उत्कृष्ट अवधिज्ञान अनन्तगुणा अधिक, उससे उत्कृष्ट मतिश्रुत अनन्तगुणा अधिक, उससे जघन्य अनुत्कृष्ट केवलज्ञान ।
521. ज्ञान कितने भाव? कितनी आत्मा ?
उ. ज्ञान भाव 3 - क्षायिक, क्षयोपशम, पारिणामिक । आत्मा 2 - ज्ञान, 116 कर्म-दर्शन
उपयोग।