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552. ज्ञानावरणीय कर्म का बंध संज्ञी के होता है या असंज्ञी के ?
उ. असंज्ञी के ज्ञानावरणीय कर्म का बंध समय-समय पर होता ही है, लेकिन दसवें गुणस्थान तक संज्ञी के भी ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। उससे आगे ज्ञानावरणीय कर्म का बंध नहीं होता । यथाख्यात चारित्र वालों के ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय एवं अंतराय ये तीनों कर्मों का बंध नहीं होता है।
553. ज्ञानावरणीय कर्म की स्थिति कितनी है ?
उ. जघन्य — - अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीस करोड़ करोड़ ' सागर ।
554. ज्ञानावरणीय कर्म का अबाधाकाल कितना है ? उ. जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष।
555. ज्ञानावरणीय कर्म का लक्षण एवं कार्य क्या है ? उ. ज्ञानावरणीय कर्म आंख की पट्टी के समान है। जैसे आंख पर पट्टी बांध
लेने से दृश्य पदार्थ और आंख के मध्य आवरण आ जाता है। उसी प्रकार ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से प्राणी की ज्ञानचेतना आवृत्त हो जाती है। यह कर्म जानने में बाधा पहुंचाता है।
556. ज्ञानावरणीय कर्म के अनुभाव कितने हैं?
उ. अनुभाव का अर्थ है— कर्म की फल देने की शक्ति । आगम में कहा गया है 3 – ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से जीव जानने योग्य को नहीं जानता, जानने का कामी होने पर भी नहीं जानता, जानकर भी नहीं जानता । ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से जीव आच्छादित ज्ञान वाला होता है। जीव द्वारा बांधे हुए ज्ञानावरणीय कर्म के दस प्रकार के अनुभाव (फल) हैं—
1. श्रोत्रावरण – कानों से शब्द न सुन सके।
2. श्रोत्र - विज्ञानावरण - सुने हुए शब्द का अर्थ न समझ सके ।
3. नेत्रावरण- आंख से न देख सके।
1. तीस करोड़ को एक करोड़ से गुणा करना ।
2. अबाधाकाल — कर्मबंध होने के प्रथम समय से लेकर जब तक उस कर्म का उदय या
उदीरणाकरण नहीं होता तब तक का काल 'अबाधाकाल' होता है।
3. प्रज्ञापना - 23/1
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