________________
ज्ञानावरणीय कर्म
406. ज्ञान क्या है? __उ. जिससे जाना जाता है, वह ज्ञान है। 407. ज्ञान किसे कहते हैं?
उ. जो वस्तु के विशेष रूपों-भेदों का ग्राहक है, उसे ज्ञान कहते हैं। 408. ज्ञान का प्रयोजन क्या है? उ. दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य आचार की सम्यक्-प्रवृत्ति व प्रयोग के लिए
ज्ञान का प्रयोजन सिद्ध होता है। 409. ज्ञान की उत्पत्ति कैसे होती है? उ. ज्ञान आत्मा का गुण है। ज्ञानावरण कर्म से वह गुण आवृत्त रहता है।
ज्ञानावरण का जितना-जितना विलय होता है उतनी-उतनी जानने की
क्षमता प्रकट होती है, यही ज्ञान की उत्पत्ति है। 410. ज्ञान के कितने प्रकार हैं? उ. ज्ञान के पांच प्रकार हैं—(1) मतिज्ञान, (2) श्रुतज्ञान, (3) अवधिज्ञान,
(4) मन:पर्यवज्ञान, (5) केवलज्ञान। 411. मतिज्ञान किसे कहते हैं?
उ. पांच इन्द्रियों व मन के निमित्त से जो ज्ञान होता है, उसे मतिज्ञान कहते हैं। 412. मतिज्ञान का दूसरा नाम क्या है? ___ उ. आभिनिबोधिक। अभि-सम्मुख-सामने, नि-निश्चयात्मक, बोध-ज्ञान
अर्थात् प्रतिनियत अर्थ को ग्रहण करने वाला अर्थाभिमुखी ज्ञान अभिनिबोध
है, इसे ही आभिनिबोधिक कहते हैं। 413. मतिज्ञान का कालमान कितना है? उ. मतिज्ञानी जघन्यतः और उत्कृष्टत: अन्तर्मुहूर्त तक उपयुक्त रह सकता है।
आवरण क्षयोपशम की अपेक्षा से जघन्य लब्धिकाल भी अन्तर्मुहूर्त ही है। उत्कृष्ट काल साधिक छियासठ सागरोपम है।'
1. तैंतीस सागरोपम आयुष्य वाले विजय आदि अनुत्तरविमानों में दो बार अथवा बाईस
सागरोपम आयुष्य वाले अच्युत आदि विमानों में तीन बार उत्पन्न होने वाले मतिज्ञानी देवों का लब्धिकाल छियासठ सागरोपम है। इसमें मनुष्य भव का कालमान मिलाने पर साधिक हो जाता है। यह कथन एक मतिज्ञानी की अपेक्षा से है। अनेक मतिज्ञानी जीवों की अपेक्षा मतिज्ञान का कालमान सर्वकाल है।
कर्म-दर्शन 95