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हैं। ज्ञेय के भेद के आधार पर ज्ञान के भेद होते हैं। अतः द्रव्य और भाव रूप ज्ञेय की अपेक्षा से अवधिज्ञान की प्रकृतियां अनन्त हैं।
क्षयोपशम के तारतम्य के आधार पर अवधिज्ञान असंख्येय प्रकार का है। 480. तिर्यंच का उत्कृष्ट जघन्य अवधिज्ञान कितना है? उ. तिर्यंचयोनिक जीव अवधिज्ञान से उत्कृष्टतः औदारिक, वैक्रिय, आहारक
और तैजस द्रव्यों तथा उनके अन्तरालवर्ती द्रव्यों को जानते हैं तथा जघन्यत: औदारिक शरीर को जानते हैं किन्तु कर्म शरीर को न जानते हैं, न
देखते हैं। 481. मनः पर्यवज्ञान किसे कहते हैं? उ. ढाई द्वीप में स्थित संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के मनोगत भावों को जिस ज्ञान
द्वारा जाना जाता है, उसे मन:पर्यवज्ञान कहते हैं। 482. मन:पर्यवज्ञान कितने प्रकार का होता है?
उ. दो प्रकार का—ऋजुमति और विपुलमति। 483. ऋजुमति मन:पर्यवज्ञान किसे कहते हैं? उ. सामान्य रूप से मानसिक भावों को ग्रहण करने वाली मति को ऋजुमति
कहते हैं। 484. विपुलमति मन:पर्यवज्ञान किसे कहते हैं? __उ. मन की विशेष पर्यायों को ग्रहण करने वाली मति को विपुलमति कहलाती
485. ऋजुमति और विपुलमति में क्या अन्तर है? उ. 1. ऋजु की अपेक्षा विपुलमति विशुद्धतर है। वह सूक्ष्मतर पदार्थों को
जानता है। 2. ऋजुमति केवल ज्ञान की उत्पत्ति के पूर्व कदाचित् नष्ट हो सकता है।
ऋजुमति साधुत्व से गिरकर जीव नरक निगोद में भी जा सकता है परन्तु विपुलमति नियम से केवलज्ञान की उत्पत्ति के क्षण पूर्व तक विद्यमान
रहती ही है। 3. ऋजुमति वर्धमान होकर विपुलमति हो सकता है पर विपुलमति हीयमान
होकर ऋजुमति नहीं हो सकता। 486. मनःपर्यवज्ञान का विषय क्या है? ___उ. मन:पर्यवज्ञान का विषय संक्षेप में चार प्रकार का है
1. द्रव्यतः, 2. क्षेत्रत:, 3. कालत:, 4. भावतः।
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