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नाम जघन्य
उत्कृष्ट 9 से 12 देवलोक अंगुल का असंख्यातवां भाग अधोलोक में धूमप्रभा का चरमांत 1 से 6 ग्रैवेयक अंगुल का असंख्यातवां भाग अधोलोक में तमःप्रभा का चरमांत 7 से 9 ग्रैवेयक अंगुल का असंख्यातवां भाग अधोलोक में महातमः प्रभा
पांच अनुत्तर विमान जघन्य उत्कृष्ट सम्पूर्ण लोक में कुछ कम देखते हैं।' 475. मतिश्रुतज्ञान और अवधिज्ञान में अभेद (समानता, साधर्म्य) क्या है? उ. मतिश्रुतज्ञान और अवधिज्ञान में चार प्रकार से अभेद परिलक्षित होता है
1. काल-एक जीव की अपेक्षा से जितना काल मति और श्रुतज्ञान का है
उतना ही अवधिज्ञान का है। 2. विपर्यय-मिथ्यात्व का उदय होने पर मति और श्रुतज्ञान अज्ञान में
बदल जाते हैं, वैसे ही अवधिज्ञान विभंगज्ञान में बदल जाता है। 3. स्वामित्व-मति और श्रुतज्ञान का स्वामी ही अवधिज्ञान का स्वामी
होता है। 4. किसी को कभी तीनों ज्ञान एक साथ प्राप्त हो जाते हैं।
476. अवधिज्ञान पहले होता है अथवा अवधिदर्शन? उ. पहले अवधिज्ञान होता है। सारी लब्धियां साकार उपयोग की अवस्था में
ही उत्पन्न होती हैं। अवधि भी एक लब्धि है। इसलिए पहले ज्ञान रूप में ही उत्पन्न होती है। उपयोग की प्रवृत्ति का क्रम होता है—पहले ज्ञान उपयोग और पश्चात् दर्शन उपयोग। इसलिए पहले ज्ञान और बाद में दर्शन होता है।
477. अवधिज्ञानी का एक द्रव्य में उपयोग कितने समय तक रह सकता है? उ. अवधिज्ञानी उपयोग की अपेक्षा एक द्रव्य में अन्तर्मुहूर्त और एक पर्याय में
जघन्य एक समय और उत्कृष्ट सात-आठ समय तक रह सकता है।
478. अवधिज्ञान स्थायी होता है अथवा अस्थायी?
उ. प्रतिपाती अवधिज्ञान जा भी सकता है। अप्रतिपाती स्थायी होता है। 479. · अवधिज्ञान संख्येय, असंख्येय अथवा अनन्त प्रकार का है? कैसे? उ. क्षेत्र और काल रूप ज्ञेय की अपेक्षा से अवधिज्ञान की प्रकृतियां असंख्य
1. वैमानिक देव ऊर्ध्वलोक में अपने-अपने विमान की ध्वजा तक देखते हैं। तिर्यक्लोक में
पल्योपम के आयुष्य वाले देव संख्यात द्वीप समुद्र देखते हैं। सागरोपम के आयुष्य वाले देव असंख्यात द्वीप समुद्र देखते हैं।
कर्म-दर्शन 109