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418. व्यंजनावग्रह किनका नहीं होता ?
उ. चक्षु और मन का व्यंजनावग्रह नहीं होता ।
419. मतिज्ञान अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा के क्रम से ही उत्पन्न होता है या इसमें व्यतिक्रम से ?
उ. क्रम से ही उत्पन्न होता है। क्योंकि इनका उत्क्रम या व्यतिक्रम होने पर अथवा एक का भी अभाव होने पर वस्तु के स्वभाव का बोध नहीं होता ।
420.
अवग्रह आदि का कालमान क्या है ?
उ. (1) अवग्रह-एक समय, (2) ईहा – अन्तर्मुहूर्त, (3) अवाय - अन्तर्मुहूर्त, (4) धारणा - संख्यात, असंख्यातकाल ।
421. अश्रुतनिश्रित मति किसे कहते हैं?
उ. शास्त्राभ्यास के बिना क्षयोपशमजन्य मति का पर्यालोचन अश्रुतनिश्रित मति है।
422.
अश्रुतनिश्रित मति के कितने प्रकार हैं ?
उ. अश्रुतनिश्रित मति के चार प्रकार हैं
(1) औत्पत्तिकी बुद्धि, (2) वैनयिकी बुद्धि, (3) कार्मिकी बुद्धि, (4) परिणामिकी बुद्धि।
423. औत्पत्तिकी बुद्धि किसे कहते हैं?
उ. जिसे कभी देखा नहीं, जिसके बारे में कभी सुना नहीं, उसके विषय में जो तत्काल ज्ञान हो जाता है, उसे औत्पत्ति बुद्धि कहते हैं। उदाहरण :
(1) औत्पत्तिकी बुद्धि – (1) भरतशीला, (2) शर्त, (3) वृक्ष, (4) मुद्रिका, (5) वस्त्रखण्ड, (6) गिरगिट, (7) कौआ, (8) उत्सर्ग, (9) हाथी, (10) भाण्ड, ( 11 ) लाख की गोली, (12) स्तम्भ, (13) क्षुल्लक, (14) मार्ग, (15) स्त्री, (16) पति, (17) पुत्र, (18) मधुमक्खियों का छाता, (19) मुद्रिका, (20) अंक, (21) रुपयों की नोली, (22) भिक्षु, (23) बालक का निधान, ( 24 ) शिक्षा, (25) अर्थशास्त्र, (26) मेरी इच्छा, (27) एक लाख, (28) मेढ़ा 1, (29) मुर्गा, (30) तिल, (31) बालुका (आव.नि. 241), (32) हाथी,
1. देखें कथा सं. 6
कर्म-दर्शन 97