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458. क्या भव-प्रत्यय अवधिज्ञान क्षयोपशमजन्य नहीं होता है? उ. अवधिज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम तो उसमें भी होता है तथापि
उसकी उत्पत्ति में भव की प्रधानता होने के कारण उसे भव-प्रत्यय ज्ञान
कहा गया है। 459. अवधिज्ञान क्षायोपशमिक भाव है और देवगति व नरकगति औदयिक भाव
है, तब देव और नारक का अवधिज्ञान भवप्रत्ययिक कैसे हो सकता है? ___उ. देव और नारक को अवधिज्ञान अवधिज्ञानावरण के क्षयोपशम से ही प्राप्त
होता है, किन्तु उस भव में उनके अवश्य होता है, इसलिए वह भवप्रत्ययिक
अवधिज्ञान कहलाता है। 460. क्षायोपशमिक अवधिज्ञान किसके होता है? उ. क्षायोपशमिक अवधिज्ञान संख्यात वर्ष वाले गर्भज मनुष्य और तिर्यंच के
तथा गुणप्रतिपन्न (मूलगुण और उत्तरगुणों से प्रतिपन्न) अनगार के होता
461. अवधिज्ञान कितने प्रकार का होता है? उ. अवधिज्ञान छह प्रकार का होता है1. आनगमिक-जो सर्वत्र अवधिज्ञानी के साथ-साथ चलता है। इसमें
क्षेत्रीय प्रतिबद्धता नहीं है। 2. अनानुगामिक-जो ज्ञान उत्पत्ति क्षेत्र में ही बना रहता है। उस क्षेत्र
को छोड़ते ही वह लुप्त हो जाता है। 3. वर्धमान-जो उत्पत्तिकाल से द्रव्य, क्षेत्र आदि में क्रमश: बढ़ता है। 4. हीयमान-जो उत्पत्तिकाल से द्रव्य, क्षेत्र आदि में क्रमशः हीन होता
5. प्रतिपाति—जिसका पतन हो जाता है।
6. अप्रतिपाति—जिसका पतन नहीं होता है। 462. क्या मनुष्यों का अवधिज्ञान अप्रतिपातिक होता है? उ. मनुष्य व तिर्यंच के अवधिज्ञान प्रतिपाति व अप्रतिपातिक दोनों होते हैं। देव
और नारक के अवधिज्ञान अप्रतिपातिक होता है। 463. अवधिज्ञान का विषय क्या है? उ. अवधिज्ञान का विषय द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की दृष्टि से चार. प्रकार
का है
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