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सामग्री उपलब्ध होने पर भी बिना पुरुषार्थ के कोई कार्य निष्पन्न नहीं होता।
नियति को घड़ने वाला भी पुरुषार्थ ही तो है। 404. नियति को कारण क्यों माना गया है? उ. नियति का अर्थ है होनहार, प्रकृतिगत व्यवस्था। निकाचित बंधने वाले
कर्मों का समूह है नियति। पुरुषार्थ से नियति का निर्माण होता है। नियति के निर्मित होने के बाद पुरुषार्थ अकिंचित्कर हो जाता है। सही दिशा में पुरुषार्थ करने के बावजूद यदि उसका परिणाम विपरीत आता है, तो उसे नियति ही मानना होगा। इस प्रकार किसी भी कार्य की निष्पत्ति में पांचों
कारणों की आवश्यकता होती है। 405. जीवों की विचित्रता कर्मकृत है तो साम्यवाद कैसे? यदि वह अन्यकृत है
तो कर्मवाद क्यों? एक जीव की स्थिति दूसरे जीव से भिन्न है उसका कारण कर्म अवश्य है। पर केवल कर्म ही नहीं उसके अतिरिक्त काल, स्वभाव, नियति, उद्योग आदि अनेक का भी सहयोग है।
92 कर्म-दर्शन