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381. निकाचित कर्म किसे कहते हैं? ___ उ. जिन कर्मों का भोग-जीव को अवश्य भोगना पड़ता है वे कर्म निकाचित
कर्म कहलाते हैं। 382. संक्रमण किसे कहते हैं? उ. जिस प्रयत्न विशेष से कर्म की उत्तर प्रकृतियों का अपनी सजातीय प्रकृतियों
में बदल जाना संक्रमण है। 383. क्या सभी प्रकृतियों में संक्रमण होता है? उ. ज्ञानावरणीय का मोहनीय आदि आठ कर्म प्रकृतियों का संक्रमण नहीं होता।
आयुष्य कर्म की चारों उत्तर प्रकृतियों का आपस में संक्रमण नहीं होता। मोह कर्म की दर्शन मोह और चारित्र मोह का परस्पर संक्रमण नहीं होता। निधत्ति व निकाचित बंधी कर्म प्रकृतियों का संक्रमण नहीं होता। उदयावलि में प्रविष्ट कर्म
का संक्रमण नहीं होता। शेष सभी कर्म प्रकृतियों का संक्रमण हो सकता है। 384. संक्रमण से क्या होता है? र. संक्रमण से प्रकृति, स्थिति, अनुभाग एवं प्रदेश का परिवर्तन होता है। एक
कर्म अशुभ रूप में बंधता है एवं शुभ रूप में उदित होता है तथा एक कर्म शुभ रूप में बंधता है एवं अशुभ रूप में उदित होता है। कर्म के बंध और उदय में यह जो अन्तर माना है उसका कारण है संक्रमण (वध्यमान में कर्मान्तर का प्रवेश)। संक्रमण में जीव अध्यवसायों से वध्यमान दलिकों के साथ पूर्वबद्ध कर्मों को संक्रान्त कर देता है, परिवर्तित कर देता है यही संक्रमण है। संक्रमण ही पुरुषार्थ के सिद्धान्त का ध्रुव आधार है। संक्रमण के अभाव में पुरुषार्थ का कोई महत्त्व नहीं रहता। संक्रमण की स्थिति हाइड्रोजन गैस से आक्सीजन
और ऑक्सीजन से हाईड्रोजन गैस का परिवर्तन जैसी है। 385. उपशम किसे कहते हैं? उ. मोहकर्म की सर्वथा अनुदयावस्था को उपशम कहते हैं। जिस समय मोहकर्म __ का प्रदेशोदय और विपाकोदय दोनों रुक जाते हैं वह अवस्था उपशम की
है। यह स्थिति पूर्ण विराम के जैसी है। 386. उपशम कितने कर्मों का होता है?
उ. मात्र एक मोहनीय कर्म का। 387. उपशम में जब सर्वथा अनुदय है फिर इसे कर्म की अवस्थाओं में कैसे
लिया गया? उ. उपशम में सर्वथा अनुदय है, पर मोह कर्म सत्ता रूप में विद्यमान रहता है,
इसलिए इसका कर्म की अवस्थाओं में ग्रहण किया गया है।
88 कर्म-दर्शन