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दसवें गुणस्थान में न होने से 9वें गुणस्थान की 66 प्रकृतियों में से इन्हें कम
कर देने से 60 प्रकृतियों का उदय दसवें गुणस्थान में होता है। 371. ग्यारहवें गुणस्थान में कितनी प्रकृतियां उदय में रहती हैं? उ. ग्यारहवें गुणस्थानवी जीवों में संज्वलन लोभ का उदय न होने से 59
प्रकृतियों का उदय होता है। 372. बारहवें गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का उदय होता है? उ. ऋषभनाराच एवं नाराच संहनन का उदय बारहवें गुणस्थान में न होने से
57 प्रकृतियों का उदय बारहवें गुणस्थान में होता है। बारहवें गुणस्थान के अन्तिम समय से पूर्व निद्रा एवं प्रचला इन दो प्रकृतियों का उदय होता है पर अन्तिम समय में नहीं होता अत: अन्तिम समय में 55 प्रकृतियों का
उदय होता है। 373. तेरहवें गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का उदय होता है। उ. ज्ञानावरणीय कर्म की 5, दर्शनावरणीय कर्म की 4 एवं अन्तरायकर्म की 5,
कुल 14 प्रकृतियों का उदय तेरहवें गुणस्थान में न होने से बारहवें गुणस्थान में जिन 55 प्रकृतियों का उदय था उनमें से 14 प्रकृतियों को घटाने से 41 प्रकृतियों का उदय होता है। तीर्थंकरनाम का उदय भी इस गुणस्थान में हो सकता है अत: 41 + 1 = 42 प्रकृतियों का उदय 13वें गुणस्थान में
संभव है। 374. 14वें गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का उदय माना गया है? उ. (1) औदारिक शरीर नाम, (2) औदारिक अंगोपांग नाम, (3) अस्थिर
नाम, (4) अशुभ नाम, (5) शुभ विहायोगति नाम, (6) अशुभ विहायोगति नाम, (7) प्रत्येक नाम, (8) शुभ नाम, (9) स्थिर नाम, (10) समचतुरस संस्थान, (11) न्यग्रोधपरि मण्डल, (12) सादि संस्थान, (13) वामन संस्थान, (14) कुब्ज संस्थान, (15) हुण्डक संस्थान, (16) अगुरुलघु, (17) उपघात, (18) पराघात, (19) उच्छ्वासनाम, (20) वर्णनाम, (21) गंधनाम, (22) रसनाम, (23) स्पर्शनाम, (24) निर्माणनाम, (25) तैजस शरीर नाम, (26) कार्मण शरीर नाम, (27) वज्रऋषभनाराच संहनन, (28) दु:स्वरनाम, (29) सुस्वरनाम, (30) असातावेदनीय या सातावेदनीय में कोई एक-इन नाम कर्म की 30 प्रकृतियों का उदय 13वें गुणस्थान के अन्तिम समय तक ही होता है। अत: 14वें गुणस्थान में शेष 12 प्रकृतियों का उदय संभव है।
HARE
कर्म-दर्शन 85