________________
अलग नहीं हो जाते, आत्मा के साथ संपृक्त रहते हैं वह अमुक-अमुक कर्म की सत्ता है। सत्ता में अबाधाकाल एवं योगकाल दोनों का समावेश हो. जाता है। सत्ता की स्थिति शान्तसागर की सी अथवा अरणि की लकड़ी में
आग जैसी है। 328. अबाधाकाल किसे कहते हैं? ___ उ. जो कर्म प्रकृति जितने काल की बंधी हुई है, उसके एक निश्चित कालमान
तक उदय में न आने को अबाधाकाल कहते हैं। कोई कर्म प्रकृति एक
करोड़ा-करोड़ सागर की बंधी है तो उसका अबाधाकाल सौ वर्ष होगा। 329. अबाधाकाल और सत्ता में क्या अन्तर है? उ. अबाधाकाल व सत्ता के अन्तर को एक उपनय से भली भांति समझा जा
सकता है। एक कुंड पानी से लबालब भरा है। उसमें से पानी निकालने के लिए मशीन लगा दी। पानी कुंड से निकलना शुरू हो गया और वह चौबीस घण्टे में खाली हो गया। पानी निकलने से पूर्व जितने समय कुण्ड में पानी भरा था, उसके सदृश अबाधाकाल है। कर्म प्रकृति के उदय के प्रथम समय में ही अबाधाकाल पूरा हो जाता है। उस कुंड से पानी एक साथ नहीं निकलता, पर निकलना शुरू हो गया। जब तक पानी अंदर है, तब तक वह सत्ता रूप है। कर्म प्रकृति का उदय शुरू हो गया और वह एक हजार वर्ष
तक चलने वाला है। उस प्रकृति की हजार वर्ष तक सत्ता रहेगी। 330. कितने कर्म प्रकृतियों की सत्ता मानी गयी है? उ. आठ कर्मों की 158 या 148 प्रकृतियों की सत्ता मानी गयी है। जो इस
प्रकार हैं1. ज्ञानावरणीय कर्म की-5, 2. दर्शनावरणीय कर्म की-9, 3. वेदनीय कर्म की-2, 4. मोहनीय कर्म की-28, 5. आयुकर्म की-4, 6. नामकर्म की-103, 7. गोत्रकर्म की-2, 8. अन्तराय कर्म की-5 कुल 158 प्रकृतियां सत्तायोग्य होती हैं। इस संख्या में बंधन नामकर्म के पन्द्रह भेद मिलाये गये हैं। यदि 15 की जगह 5 भेद ही बंधन नामकर्म के समझें जाए तो सत्तायोग्य प्रकृतियों की संख्या 148 होगी। वर्तमान में जितनी प्रकृतियां सत्ता में है उसे स्वरूप सत्ता एवं जिनका बंध संभव है उसे
संभव सत्ता कहते हैं। 331. पहले गुणस्थान में कितने कर्मों की सत्ता संभव है? __उ. पहले गुणस्थान में 148 प्रकृतियों की सत्ता मानी गयी है।
76 कर्म-दर्शन