________________
(8) स्थिरनाम, (9) शुभनाम, ( 10 ) सुभगनाम, (11) सुस्वरनाम, (12) आदेयनाम, (13) आहारक शरीर नाम, (14) तैजस शरीर नाम, (15) वैक्रिय शरीर नाम, ( 16 ) कार्मण शरीर नाम, (17) वैक्रिय अंगोपांग नाम, ( 18 ) आहारक अंगोपांग नाम, ( 19 ) समचतुरस संस्थान, (20) निर्माण नाम, (21) तीर्थंकर नाम, (22) वर्णनाम, (23) गंधनाम, (24) रसनाम, (25) स्पर्शनाम, (26) अगुरुलघुनाम, (27) उपघातनाम, ( 28 ) पराघातनाम, (29) उच्छ्वासनाम, (30) पंचेन्द्रिय जातिनाम । इन तीस नाम कर्म की प्रकृतियों का बंध छठे भाग से आगे नहीं होता है। तथा कषाय मोहनीय की चार प्रकृतियों का बंध सातवें भाग से आगे नहीं होता है। वे प्रकृतियां हैं— (1) हास्य, (2) रति, (3) जुगुप्सा, (4) भय । अतः 26 में से इन 4 प्रकृतियों को घटा देने से नौवें गुणस्थान में 22 प्रकृतियों का बंध हो सकता है।
320. नौवें
गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का बंध होता है ?
उ. नौवें गुणस्थान के पांच भाग होते हैं। पहले भाग में 22 प्रकृतियों का बंध होता है। पहले भाग के अन्तिम समय में पुरुषवेद, दूसरे भाग के अन्तिम समय में संज्वलन क्रोध, तीसरे भाग के अन्तिम समय में संज्वलन मान, चौथे भाग के अन्तिम समय में संज्वलन माया एवं पांचवें भाग के अन्तिम समय में संज्वलन लोभ का बंधविच्छेद हो जाने से दसवें गुणस्थान में 17 प्रकृतियों का बंध होता है।
321. दसवें गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का बंध होता है ?
उ. दसवें गुणस्थान में 17 प्रकृतियों का बंध होता है। दसवें गुणस्थान के अन्तिम समय में ज्ञानावरणीय की 5, दर्शनावरणीय की 4, अन्तराय कर्म की पांच तथा यशः कीर्तिनाम, उच्चगोत्र कर्म, कुल 16 प्रकृतियों का बंध विच्छेद हो जाने से आगे मात्र एक प्रकृति सातावेदनीय का बंध होता है। 322. 11वें, 12वें तथा 13वें गुणस्थान में कितनी प्रकृतियां बंधती हैं?
उ. इन तीन गुणस्थानों में मोह का अभाव हो जाने से योग से एक साता वेदनीय का 2 समय की स्थिति का बंध होता है। 14वें गुणस्थान में योग का अभाव हो जाने से किसी भी प्रकृति का बंध नहीं होता है।
323. कर्म बंध की चार अवस्थाएं कौन-कौनसी हैं ?
उ. (1) स्पष्ट कर्मबंध,
(3) निधत्त कर्मबंध,
74 कर्म-दर्शन
(2) बद्ध कर्मबंध,
(4) निकाचित कर्मबंध |