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तथा आहारक अंगोपांग इन तीन उत्तर प्रकृतियों को छोड़कर 117 प्रकृतियों
का बंध हो सकता है। 373. दूसरे गुणस्थान में समुच्चय की दृष्टि से कितनी प्रकृतियों का बंध हो सकता
उ. पहले गुणस्थान में जो 117 प्रकृतियों का बंध हो सकता है। उनमें से 16
उत्तरप्रकृतियों का बंध विच्छेद प्रथम गुणस्थान के अन्तिम समय में हो जाने से दूसरे गुणस्थान में 101 कर्म प्रकृतियों का बंध संभव है। बंध विच्छेद वाली प्रकृतियां हैं1. नरकगति, 2. नरकानुपूर्वी नाम, 3. नरकायुष्य, 4-7. एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय जाति नाम, 8. स्थावर नाम, 9. सूक्ष्म नाम, 10. साधारण नाम, 11. अपर्याप्त नाम, 12. हुण्डक संस्थान, 13. आतपनाम, 14. सेवार्त संहनन, 15. नपुंसक वेद, 16. मिथ्यात्व मोहनीय। ये सभी कर्म प्रकृतियां मिथ्यात्व मोह के उदय से बंधती हैं। दूसरे गुणस्थान में मिथ्यात्व
का उदय न होने से इनका बंध नहीं होता है। 314. तीसरे गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का बंध हो सकता है? उ. दूसरे गुणस्थान में बंध योग्य 101 प्रकृतियों में से 27 प्रकृतियों को तीसरे
गुणस्थान वाला नहीं बांधता अतः समुच्चय दृष्टि से 74 उत्तर प्रकृतियों का बंध हो सकता है। जो 27 प्रकृतियां तीसरे गुणस्थान में नहीं बंधती हैं वे हैं-1-4. अनन्तानुबंधी चतुष्क, 5. निद्रानिद्रा, 6. प्रचलाप्रचला, 7. स्त्यानर्द्धि, 8. तिर्यञ्चगति, 9. तिर्यञ्चायु, 10. तिर्यञ्चानुपूर्वीनाम, 11. दुर्भगनाम, 12. दुःस्वरनाम, 13. अनादेय नाम, 14. ऋषभनाराच संहनन, 15. नाराच संहनन, 16. अर्धनाराच संहनन, 17. कीलिका संहनन, 18. न्यग्रोध परिमण्डल, 19. सादि संस्थान, 20. वामन संस्थान, 21. कुब्ज संस्थान, 22. नीच गोत्र, 23. उद्योतनाम, 24. अशुभविहायोगति नाम, 25. स्त्रीवेद, 26. देवायु, 27. मनुष्यायु। इन 27 प्रकृतियों के घटाने से
74 प्रकृतियों का बंध तीसरे गुणस्थान में होता है। 315. चौथे गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का बंध होता है? उ. तीसरे गुणस्थान में जो 74 प्रकृतियां बंध योग्य हैं उनमें तीर्थंकर नाम, देवायु
तथा मनुष्यायु इन तीन प्रकृतियों को चौथे गुणस्थान वाला बांध सकता है। अत: इनको मिलाने से 74 + 3 = 77 प्रकृतियां चौथे गुणस्थान में बांधी जा सकती हैं।
72 कर्म-दर्शन