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वेदनीय कर्म का बंध प्रथम चारों करते हैं। (केवलज्ञानी करते भी हैं और नहीं भी करते।) (पांचवें विकल्प के स्वामी तीन हैं—सयोगी केवली, अयोगी केवली और सिद्ध। सयोगी केवली बंधक है, शेष दो अबंधक हैं। वीतराग और सयोगी केवली ज्ञानावरण आदि का बंध नहीं करते, इसलिए
भजना है।) 304. ज्ञानावरणादि आठों कर्मों का बंध क्या मति-अज्ञानी करता है? श्रुतअज्ञानी
करता है? विभंगज्ञानी करता है? उ. आयुष्य कर्म को छोड़कर सातों ही कर्म प्रकृतियों का बंध वे करते हैं।
आयुष्य कर्म का बंध करते भी हैं और नहीं भी करते, भजना है। 305. ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का बंध क्या मनोयोगी करता है? वचनयोगी
करता है? काययोगी करता है? अयोगी करता है? उ. प्रथम तीनों वेदनीय कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों का बंध करते भी हैं
और नहीं भी करते, भजना है। अयोगी नहीं करता।
वेदनीय कर्म का बंध प्रथम तीनों करते हैं, नियमा है। अयोगी नहीं करता। 306. ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का बंध क्या साकार उपयोग वाला करता है?
अनाकार उपयोग वाला करता है? उ. आठों ही कर्म-प्रकृतियों का बंध वे करते भी हैं और नहीं भी करते, भजना
है। (साकार और अनाकार उपयोग वाले सयोगी जीव कर्म का बंध करते हैं। साकार और अनाकार उपयोग वाले अयोगी जीव कर्म का बंध नहीं
करते।) 307. ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का बंध क्या आहारक करता है? अनाहारक
करता है? उ. आहारक और अनाहारक वेदनीय और आयुष्य को छोड़कर शेष छ: कर्मों
का बंध करते भी हैं और नहीं भी करते, भजना है। वीतराग और केवली आहारक के ज्ञानावरणादि कर्म का बंध नहीं होता, सराग आहारक के उसका बंध होता है। वेदनीय कर्म का बंध आहारक करता है। अनाहारक करते भी हैं और नहीं भी करते, भजना है। (समुद्घातगत केवली और विग्रहगति-समापन्नक जीव अनाहारक अवस्था में वेदनीय कर्म का बंध करते हैं, अयोगी केवली और सिद्ध के उसका बंध नहीं होता। आयुष्य कर्म का बंध आहारक करता भी है और नहीं भी करता, भजना है। अनाहारक बंध नहीं करता।)
70 कर्म-दर्शन