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308. ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों का बंध क्या सूक्ष्म करता है? बादर करता
है? नो सूक्ष्म-नो बादर करता है? उ. आयुष्य कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों का बंध सूक्ष्म करता है। बादर
करता भी है और नहीं भी करता, भजना है। (एकेन्द्रिय जीव सूक्ष्म और बादर दोनों प्रकार के होते हैं, शेष जीव केवल बादर होते हैं। सूक्ष्म नामकर्म के उदय से सूक्ष्म जीवों की शारीरिक रचना बहुत सूक्ष्म होती है। उनके शरीर समुदित होकर भी दृष्टिगोचर नहीं बनते। वीतराग बादर जीव ज्ञानावरण कर्म का अबंधक है। सराग बादर जीव उसका बंधक है। नो सूक्ष्म-नो बादर सिद्ध होता है, वह अबंधक है। आयुष्य कर्म का बंध सूक्ष्म और बादर करते भी हैं और नहीं भी करते,
भजना है। नो सूक्ष्म और नो बादर नहीं करता। 309. ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों का बंध क्या चरम करता है? अचरम करता
उ. चरम और अचरम ज्ञानावरणीय आदि कर्म का बंध करता भी है, और नहीं
भी करता, भजना है। जिसका भव चरम होगा, वह चरम है। जिसका भव चरम नहीं होगा, वह अचरम है। सयोगी चरम यथायोग आठों कर्मों का बंध करता है। अयोगी चरम अबंधक होता है, इसलिये भजना है। संसारी अचरम जीव आठों कर्मों का बंध करता है, मुक्त जीव का पुनर्भव नहीं होता, इस अपेक्षा से वह भी अचरम है, वह कर्म का अबंधक होता
है, इसलिये अचरम में भी भजना है। 310. आठ कर्मों की उत्तरप्रकृतियों में कितनी प्रकृतियां बंध योग्य हैं?
उ. आठ कर्मों की उत्तरप्रकृतियों में बंध योग्य 120 प्रकृतियां हैं। 311. उदय योग्य 122 और बंधने वाली 120 प्रकृतियां ही हैं, ऐसा क्यों उ. सम्यक्त्व मोहनीय, मिथ्यात्व मोहनीय एवं मिश्र मोहनीय, मोहनीय कर्म
की ये तीन प्रकृतियां उदय की अपेक्षा से हैं। बंध केवल मिथ्यात्व मोहनीय प्रकृति का ही होता है। इसका उदय एवं बंध केवल प्रथम गुणस्थान में होता है। बाकी दोनों प्रकृतियां इसी के हलके रूप हैं जो केवल उदय योग्य हैं।
इसलिए बंध योग्य प्रकृतियां 120 ही हैं। 312. प्रथम गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का समुच्चय दृष्टि से बंध हो सकता
उ. समुच्चय की दृष्टि से प्रथम गुणस्थान में तीर्थंकर नाम, आहारक शरीर नाम
कर्म-दर्शन 71