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316. पांचवें गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों को बांधा जा सकता है ?
उ. पांचवें गुणस्थान में 67 प्रकृतियों का बंध हो सकता है। चौथे गुणस्थान अन्तिम समय में इन दस प्रकृतियों का बंध-विच्छेद हो जाने से पांचवें गुणस्थानवर्ती जीव इन्हें नहीं बांधता है। ये प्रकृतियां हैं
(1) वज्रऋषभनाराचसंहनन, (2) मनुष्य गति, (3) मनुष्य आनुपूर्वीनाम, (4) मनुष्यायु, (5) औदारिक शरीर नाम, (6) औदारिक अंगोपांग नाम, (7)-(10) अप्रत्याख्यानी चतुष्क। चौथे गुणस्थान में जो 77 प्रकृतियों का बंध हो सकता है उनमें से इन दस को घटाने से 67 प्रकृतियां पांचवें गुणस्थान में बांधी जा सकती हैं।
317. छठे
गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का बंध हो सकता है ?
उ. छठे गुणस्थान में प्रत्याख्यानी चतुष्क का बंध नहीं हो सकता। पांचवें गुणस्थान में बंधयोग्य 67 प्रकृतियों में से इन चार को घटाने से 63 प्रकृतियों को छठे गुणस्थान में बांधा जा सकता है।
318. सातवें गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का बंध संभव है ?
उ. छठे गुणस्थान के अन्तिम समय में (1) शोक, (2) अरति, (3) अस्थिर नाम, (4) अशुभ नाम, (5) अयशकीर्ति नाम, ( 6 ) असातावेदनीय इन छः प्रकृतियों का बंधविच्छेद होने से 57 प्रकृतियों का बंध सातवें गुणस्थान में होता है। जो जीव छठे गुणस्थान में देवायु को प्रारम्भ कर उसी में पूर्ण कर देते हैं उनके 56 प्रकृतियों का बंध होता है पर जो छठे गुणस्थान में देवायु को प्रारम्भ कर बीच में ही सातवें गुणस्थान में प्रवेश कर जाते हैं उनके 57 प्रकृतियों का बंध हो सकता है। सातवें गुणस्थान में आहारक शरीर नाम तथा आहारक अंगोपांग इन दो प्रकृतियों का बंध संभव होने से सातवें गुणस्थान में 58 या 59 प्रकृतियों को बांधा जा सकता है।
319. आठवें गुणस्थान में कर्म प्रकृतियों के बंध का क्या क्रम है ?
उ.
आठवें गुणस्थान के सात भाग होते हैं। पहले भाग में 58 प्रकृतियों का बंध हो सकता है। निद्रा और प्रचला ये दो प्रकृतियां पहले भाग से आगे नहीं बंधती हैं। अत: दूसरे से छठे भाग पर्यन्त 56 प्रकृतियों का बंध संभव है, पर छठे भाग में 30 प्रकृतियों का बंधविच्छेद हो जाने से सातवें भाग में 26 प्रकृतियों का बंध होता है। जो तीस प्रकृतियां छठे भाग से आगे नहीं बंधती हैं वे हैं— (1) देवगति, (2) देवानुपूर्वी, (3) अशुभ विहायोगति (4) त्रसनाम, (5) बादर नाम, (6) पर्याप्त नाम, (7) प्रत्येक नाम,
कर्म-दर्शन 73