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343. विपाकोदय किसे कहते हैं? उ. जो कर्म अपना फल देकर नष्ट हो जाता है, उसे विपाकोदय कहते हैं। कोई
भी कर्म बिना विपाकोदय के फल नहीं दे सकता। विपाकोदय से आत्मा को सुख-दु:ख की स्पष्ट अनुभूति एवं संवेदना होती है। यह स्थिति फूल
शूल के स्पर्श का स्पष्ट अनुभव लिये होती है। 344. कर्म के विपाकोदय में क्या कोई निमित्त भी कार्यकारी बनता है?
उ. कर्म के विपाकोदय में चार निमित्त कार्यकारी बनते हैं(1) क्षेत्र विपाक-क्षेत्र विशेष में कर्म का विपाकोदय होना। यथा-किसी
व्यक्ति के बैंगलूर जाने से वह श्वास का रोगी हो जाता है, मद्रास जाने से स्वस्थ हो जाता है। जीव विपाक—बिना किसी बाहरी हेतु के क्रोधित होना, द्वेष के भाव उभरना आदि। भाव विपाक-भावना के उतार चढ़ाव के साथ कर्मों का विपाकोदय
होना। (4) भव विपाक-अमुक भव में कर्म की अमुक प्रकृति का विशेष रूप से
विपाकोदय होना। यथा-बंदर के भव में वासना; सर्प के भव में क्रोध की
प्रकृति का विशेषतः उदय रहता है। 345. कर्मों का उदय सहेतुक होता है या निर्हेतुक? उ. कर्मों का परिपाक और उदय अपने आप भी होता है और दूसरों के द्वारा
भी। सहेतुक भी होता है और निर्हेतुक भी। बाहरी कारण नहीं मिला और क्रोध वेदनीय पुद्गलों के तीव्र विपाक से अपने आप क्रोध आ गया; यह निर्हेतुक उदय है। किसी ने गाली दी और क्रोध आ गया-यह क्रोध वेदनीय
पुद्गलों का सहेतुक विपाकोदय है। 346. अपने आप उदय में आने वाले कर्म के हेतु कौनसे हैं?
उ. अपने आप उदय में आने वाले विपाक हेतुक हैं(1) गति हेतुक उदयनरक गति असात का तीव्र उदय होता है यह गति हेतुक
विपाकोदय है। (2) स्थिति हेतुक उदय-मोहकर्म की सर्वोत्कृष्ट स्थिति में मिथ्यात्व का तीव्र
उदय होता है, यह स्थिति-हेतुक विपाक-उदय है। (3) भव हेतुक उदय-दर्शनावरणीय कर्म का उदय सबके होता है। इसके उदय
से नींद आती है पर मनुष्यों एवं तिर्यञ्चों को आती है यह भव (जन्म)
कर्म-दर्शन 79