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भी है और नहीं भी करता। (वीतराग पर्याप्तक ज्ञानावरण कर्म का अबंधक है। सराग पर्याप्तक उसका बंध करता है।) अपर्याप्तक बंध करता है। नो पर्याप्तक-नो अपर्याप्तक बंध नहीं करता। पर्याप्तक और अपर्याप्तक में आयुष्य कर्मबंध की भजना है। नो पर्याप्तक-नो अपर्याप्तक बंध नहीं
करता। 301. ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का बंध क्या भाषक (भाषा पर्याप्ति सम्पन्न)
करता है? अभाषक करता है? वेदनीय को छोड़कर सात कर्मों का बंध दोनों करते भी हैं, और नहीं भी करते। (वीतराग भाषक ज्ञानावरण का बंध नहीं करता, सराग करता है। द्वितीय विकल्प के स्वामी चार हैं-अयोगी केवली, सिद्ध, एकेन्द्रिय और विग्रहगति समापन्नक जीव। इसमें अयोगी केवली और सिद्ध ज्ञानावरण का बंध नहीं करते, एकेन्द्रिय और विग्रहगति समापन्नक जीव करते हैं)। भाषक वेदनीय कर्म का बंध करता है। अयोगी केवली और सिद्ध वेदनीय कर्म के अबंधक हैं, एकेन्द्रिय और विग्रहगति समापन्नक जीव उसका बंध
करते हैं। 302. ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का बंध क्या परीत करता है? अपरीत करता है?
नो परीत-नो अपरीत करता है? आयूष्य कर्म को छोड़कर शेष सात कर्मों का बंध परीत करता भी है और नहीं भी करता। (परीत के दो अर्थ हैं—प्रत्येक शरीरी जीव और परिमित संसार (जन्म-मरण) वाला जीव। अपरीत का अर्थ है साधारण शरीर वाला जीव और अनंत संसार वाला जीव। वीतराग परीत ज्ञानावरण का अबंधक है, सराग परीत उसका बंधक है।) अपरीत बंध करता है। नो परीत और नो अपरीत बंध नहीं करता। आयुष्य कर्म का बंध परीत और अपरीत दोनों ही करते भी हैं और नहीं भी
करते। नो परीत और नो अपरीत बंध नहीं करता। 303. ज्ञानावरणादि आठ कर्मों का बंध क्या मतिज्ञानी करता है? श्रुतज्ञानी करता
है? अवधिज्ञानी करता है? मन:पर्यवज्ञानी करता? केवलज्ञानी करता है? उ. वेदनीय कर्म को छोड़कर सातों ही कर्म का बंध प्रथम चार ज्ञानधारियों के
होता भी है और नहीं भी होता। प्रथम चारों वेदनीय कर्म को छोड़कर शेष सातों कर्म का बंध करते भी हैं और नहीं भी करते, भजना है। (मतिज्ञानी आदि चार विकल्पों में यदि वीतराग है, तो वह अबंधक है, और यदि सराग है तो वह बंधक है।)
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कर्म-दर्शन 69