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नामकर्मकथनी-करनी में समानता और असमानता ।
गोत्र कर्म — अहंकार करना और न करना ।
अन्तराय कर्म—बाधा पहुंचाना।
293. ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों का बंध क्या स्त्री करती है ? पुरुष करता है ? नपुंसक करता है ? नो स्त्री-नो पुरुष - नो नपुंसक करता है ?
उ. आयुष्य कर्म को छोड़कर ज्ञानावरणीय आदि सात कर्मों का बंध स्त्री भी करती है, पुरुष भी करता है, नपुंसक भी करता है; नो स्त्री-नो पुरुष - नो नपुंसक कर्म का बंध करता भी है और नहीं भी करता ।
294.
आयुष्य कर्म का बंध क्या स्त्री करती है ? पुरुष करता है ? नपुंसक करता है ? नो स्त्री-नो पुरुष - नो नपुंसक करता है ?
उ. आयुष्य कर्म का बंध-स्त्री, पुरुष और नपुंसक करता भी है और नहीं भी करता, अर्थात् भजना है। नो स्त्री-नो पुरुष - नो नपुंसक आयुष्य कर्म का बंध नहीं करता।
295. ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों का बंध क्या संयत करता है ? असंयत करता है ? संयतासंयत करता है? नो संयत-नो असंयत-नो संयतासंयत करता है ? उ. आयुष्य कर्म को छोड़कर ज्ञानावरणीय आदि सात कर्मों का बंध संयत करता भी है और नहीं भी करता । असंयत और संयतासंयत बंध करता है। नो संयत-नो असंयत और नो संयतासंयत सिद्ध होता है। उसके कर्मबंध का कोई हेतु नहीं है इसलिए कर्मबंध नहीं करता ।
संयत, असंयत और संयतासंयत के आयुष्य का बंध होता भी है और नहीं भी होता । सिद्ध के आयुष्य का बंध नहीं होता ।
296. ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्मों का बंध सम्यकदृष्टि करता है ? मिथ्यादृष्टि करता है? सम्यक्-मिथ्यादृष्टि करता है ?
उ. सम्यक्दृष्टि के दो प्रकार हैं— सराग- सम्यग्दृष्टि और वीतराग सम्यकदृष्टि। सराग सम्यक् दृष्टि के ज्ञानावरण आदि का बंध होता है, वीतराग सम्यग्दृष्टि के नहीं होता । मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि बंध करता है।
इसी प्रकार आयुष्य कर्म को छोड़कर सातों ही कर्मप्रकृतियों का बंध तीनों दृष्टि वालों के लिए जानना चाहिए। प्रथम दोनों सम्यक्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि आयुष्य कर्म का बंध करते भी हैं और नहीं भी करते हैं अर्थात् भजना है। सम्यग्-मिथ्यादृष्टि बंध नहीं करता ।
कर्म-दर्शन 67