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कर्म की दस अवस्थाएं
262 कर्म की कितनी अवस्थाएं हैं? उ. मुख्यरूप से कर्म की दस अवस्थाएं हैं
(1) बंध, (2) उद्वर्तन, (3) अपवर्तना, (4) सत्ता, (5) उदय, (6) उदीरणा, (7) संक्रमण, (8) उपशम, (9) निधत्ति और (10)
निकाचना। 263. कर्म की अवस्थाओं में उदयकालीन व बंधकालीन अवस्थाएं कितनी
कितनी हैं? उदयकालीन अवस्थाएं-उदय, उदीरणा। बंधकालीन अवस्थाएं-बंध, सत्ता, उपशम। उदय व बंध दोनों—अवशिष्ट पांच।
उदीरणा वैसे उदय में लाने की प्रक्रिया है। 264. बंध किसे कहते हैं? उ. आत्म-प्रदेशों के साथ कर्म पुद्गलों का चिपक जाना बंध है। जीव के
असंख्य प्रदेश हैं। उनमें मिथ्यात्व, अव्रत आदि पांच आश्रवों के निमित्त से कम्पन पैदा होता है। इस कम्पन के फलस्वरूप जिस क्षेत्र में आत्मप्रदेश है, उस क्षेत्र में विद्यमान अनन्तानंत कर्मयोग्य पुद्गल जीव के एक-एक प्रदेश के साथ चिपक जाते हैं। इस प्रकार आत्मप्रदेशों के साथ पुद्गलों का इस प्रकार चिपक जाना, दूध-पानी की तरह एकमेक हो जाना ही बंध
कहलाता है। 265. बंध के कितने प्रकार हैं? उ. बंध के चार प्रकार हैं(1) प्रकृति बंध,
कर्मों का स्वभाव, (2) स्थिति बंध,
कर्मों का कालमान, (3) अनुभाग बंध और - कर्मों की फल देने की शक्ति, (4) प्रदेश बंध।
कर्मों का दलसंचय। 266. प्रकृतिबंध किसे कहते हैं? उ. कर्म पुद्गलों में अलग-अलग स्वभाव का उत्पन्न होना प्रकृतिबंध है। जैसे
मैथी का लड्ड वायु के विकार को, सोंठ का लड्ड कफ-विकार को, काली
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