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198.
आठ कर्मों का उदय छह द्रव्य में कौन ? नौ तत्त्व में कौन ?
उ. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अन्तराय- - इन चार कर्मों का उदय-छह में- पुद्गल । नौ में 3 – अजीव, पाप,
बंध ।
* वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुष्य इन चार कर्मों का उदय छह में पुद्गल । नौ में चार — अजीव, पुण्य, पाप और बंध |
199.
आठ कर्मों का उदय निष्पन्न छह द्रव्य में कौन ? नौ तत्त्व में कौन ?
उ. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, आयुष्य, गोत्र और अन्तराय — इन छः कर्मों का उदय निष्पन्न छह में— जीव | नौ में— जीव ।
* मोहनीय, नाम — - इन दो कर्मों का उदय निष्पन्न छह में—जीव । नौ में -2 जीव, आश्रव ।
200.
आठ कर्मों का उदय निष्पन्न किस-किस गुणस्थान तक ?
उ. ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, अन्तराय- - इन तीन कर्मों का उदय निष्पन्न — पहले से बारहवें गुणस्थान तक ।
* मोहनीय कर्म के दो भेद — दर्शन मोहनीय, चारित्र मोहनीय । दर्शन मोहनीय का उदय निष्पन्न — पहले से सातवें गुणस्थान तक। चारित्र मोहनीय का उदय निष्पन्न — पहले से दसवें गुणस्थान तक ।
* वेदनीय, नाम, गोत्र, आयुष्य — इन चार कर्मों का उदय निष्पन्न- पहले से चौदहवें गुणस्थान तक।
201. औपशमिक भाव किसे कहते हैं ?
उ. मोहकर्म के उपशम से होने वाली आत्मा की अवस्था को औपशमिक भाव कहते हैं।
उपशम कितने कर्मों का होता है ?
202.
उ. एक मोहनीय कर्म का ।
203.
उपशम के कितने भेद हैं?
उ. उपशम के ग्यारह प्रकार हैं
(1) उपशांत क्रोध, (2) उपशांत मान, (3) उपशांत माया, (4) उपशांत लोभ, (5) उपशांत राग, (6) उपशांत द्वेष, (7) उपशांत दर्शनमोह, (8) उपशांत चारित्रमोह, (9) औपशमिक सम्यक्त्व, ( 10 ) औपशमिक चारित्र, (11) उपशांत कषाय —छद्मस्थ वीतराग । औपशमिक के संक्षिप्त दो प्रकार भी मिलते हैं— (1) औपशमिक सम्यक्त्व, (2) औपशमिक चारित्र ।
कर्म-दर्शन 45