________________
1. केवलज्ञानावरण
2. केवलदर्शनावरण 3. निद्रा
4. निद्रा-निद्रा 5. प्रचला
6. प्रचला-प्रचला 7. स्त्यानर्द्धि
8. अनन्तानुबंधी क्रोध 9. अनन्तानुबंधी मान 10. अनन्तानुबंधी माया 11. अनन्तानुबंधी लोभ 12. अप्रत्याख्यानावरण क्रोध 13. अप्रत्याख्यानावरण मान 14. अप्रत्याख्यानावरण माया 15. अप्रत्याख्यानावरण लोभ 16. प्रत्याख्यानावरण क्रोध 17. प्रत्याख्यानावरण मान 18. प्रत्याख्यानावरण माया 19. प्रत्याख्यानावरण लोभ 20. मिथ्यात्व। देशघातिनी प्रकृतियां-जो प्रकृतियां आत्मगुणों की घातक अवश्य हैं, लेकिन उनके अस्तित्व में भी न्यूनाधिक रूप में आत्मगुणों का प्रकाश होता
रहता है। देशघातिनी प्रकृतियां 25 हैं1. ज्ञानावरणीय की 4-मति, श्रुत, अवधि, मन:पर्यवज्ञान। 2. दर्शनावरणीय की 3-चक्षु, अचक्षु और अवधि दर्शनावरण। 3. मोहनीय की 13-संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति,
भय, शोक, जुगुप्सा, स्त्री, पुरुष, नपुंसक वेद। 4. अन्तराय की 5-दान, लाभ, भोग, उपभोग और वीर्य अन्तराय।
यहाँ सर्वघाति की 20 और देशघाति की 25 प्रकृतियां जो कुल मिलाकर 45 हैं, वे बंध की अपेक्षा से समझना चाहिए। जब उदय की अपेक्षा से विचार करते हैं तो सम्यक्त्व और मिश्र मोहनीय को मिलाने पर 47 प्रकृतियां होती हैं। सम्यक्त्व मोहनीय का देशघाति में और मिश्र मोहनीय का सर्वघाति प्रकृतियों में समावेश होता है। तब सर्वघाती 21 और देशघाती 26 प्रकृतियां होती हैं। * अघाति प्रकृतियांबंधयोग्य 120 और उदययोग्य 122 प्रकृतियों में से क्रमश: उपर्युक्त 45
और 47 घाति प्रकृतियों को कम करने पर शेष 75 प्रकृतियां अघाति हैं। वेदनीय की दो-साता वेदनीय, असाता वेदनीय। आयुकर्म की चार-नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देवायु। नामकर्म की 67, पराघात, उच्छ्रास, आतप, उद्योत, अगुरुलघु तीर्थंकर, निर्माण, उपघात, पांच शरीर, तीन अंगोपांग, छः संस्थान, छः संहनन,
54 कर्म-दर्शन